अच्छे कर्म करें, और बुरे कर्मों से बचें, तभी आपके जीवन में सुख बढ़ेगा और दुख हटेगा

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संसार में जिन लोगों के पास धन बहुत अधिक है, वे सोचते हैं, कि “हमारे पास तो बहुत धन संपत्ति है। हम धन से कुछ भी खरीद सकते हैं।” उनकी यह सोच ठीक नहीं है। क्योंकि थोड़ा भी गहराई से विचार करें, तो आप समझ सकते हैं, कि “धन से मोटर गाड़ी बंगला भोजन वस्त्र आभूषण फल मिठाई आदि बहुत सी वस्तुएं खरीदी जा सकती हैं। परंतु सब वस्तुएं नहीं।” “जैसे धन से आप भोजन खरीद सकते हैं, परंतु भूख नहीं खरीद सकते। धन से आप बिस्तर खरीद सकते हैं, परंतु नींद नहीं।” ऐसे ही और भी बहुत सी ऐसी वस्तुएं हैं, जो धन से खरीदी नहीं जा सकती। तो यह सोचना गलत है, कि “हमारे पास बहुत धन है, हम कुछ भी खरीद लेंगे, और सुख भी खरीद लेंगे।”
इसी प्रकार से जीवन में बहुत से दुख भी आते रहते हैं। यदि कोई ऐसा सोचे, कि “जैसे लोहा लकड़ी मिठाई आदि बहुत सी वस्तुएं बेची जाती हैं, ऐसे ही जो हमारे दुख हैं, इनको भी हम बाजार में बेच देंगे, और उससे भी धन कमा लेंगे।” तो यह सोच भी गलत है। “क्योंकि लोहा लकड़ी मिठाई आदि वस्तुओं को लोग खरीदना चाहते हैं, इसलिए आप इन्हें बेच सकते हैं, और ये वस्तुएं बाजार में बिक भी जाती हैं।” “परंतु दुख तो कोई भी खरीदना नहीं चाहता। खरीदने की बात तो बहुत दूर है, दुख को तो कोई मुफ्त में भी लेना नहीं चाहता।” इसलिए यह सोचना भी गलत है, कि “दुखों को भी हम अपने जीवन में से ऐसे ही निकाल देंगे, जैसे हम लोहा लकड़ी मिठाई आदि वस्तुएं बेच डालते हैं। दुख कोई बिकने वाली वस्तु नहीं है।”
अब प्रश्न यह होता है, कि “”आप मोटर गाड़ी बंगला खाना पीना सोना चांदी आदि बहुत सी वस्तुएं धन से खरीद सकते हैं, परंतु सुख को क्यों नहीं खरीद सकते?”* इसका उत्तर है, कि “ईश्वर की व्यवस्था ही ऐसी है, कि सुख, शुभ कर्मों से मिलता है, धन से नहीं। इसलिए आप धन से सुख को नहीं खरीद पाएंगे।” “यदि आप सुख प्राप्त करना चाहते हों, तो आपको वेदानुकूल शुभ कर्मों का आचरण करना होगा, तभी आपको सुख मिलेगा।”
“इसी प्रकार से यदि आप अपने जीवन में से दुख को निकाल देना चाहते हैं, तो यह बाजार में नहीं बिकेगा, बल्कि आपको बुरे काम बन्द करने पड़ेंगे। क्योंकि बुरे कर्मों का आचरण करने से दुख मिलता है। यह भी ईश्वर की ही व्यवस्था है।”
इसलिए सुख दुख के संबंध में तो आपको यही समझना होगा, कि “अच्छे कर्म करें, और बुरे कर्मों से बचें, तभी आपके जीवन में सुख बढ़ेगा और दुख हटेगा।”
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक,

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