आप अपना विश्लेषण तो कीजिए

🥀 ०८ अक्टूबर २०२३ रविवार 🥀
!! आश्विन कृष्णपक्ष नवमी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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आप अपना विश्लेषण तो कीजिए
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👉 मनुष्य को असीम शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आत्मिक सम्पदाओं से सुसज्जित कर इस भूतल पर भेजा गया है; पर अपने प्रयोग का ढङ्ग विपरीत हो जाने, उद्देश्य बदल जाने के कारण उन शक्तियों से लाभ तो कुछ मिलता नहीं अशान्ति, भय, घबराहट, चिड़चिड़ापन, अस्थिरता, राग, द्वेष, घृणा, स्वार्थ और ईर्ष्या का वातावरण और तैयार कर लेता है। आत्म-विकास के लिए अपनी क्षमताओं को ईश्वरीय रूप में देखना था और उनका प्रयोग दिव्य तेज और स्फूर्ति की प्राप्ति के लिए किया जाना चाहिये था। ऐसा करने वाले मनुष्य का अपना जीवन सार्थक होता और दूसरों को भी आत्म कल्याण की प्रेरणा मिलती।
👉 आप अपनी मानसिक दुर्बलताओं का विशेषण किया कीजिये। देखिये क्या यह कामनाएँ और वासनाएँ अन्त तक आपका साथ देंगी ? आप इस पर जितना अधिक विचार करेंगे उतना ही वे तुच्छ प्रतीत होंगी और उनके प्रति आपके जी में घृणा उत्पन्न होगी। मानसिक दुर्बलताएँ रुकेंगी तो आन्तरिक शक्तियों का प्रस्फुरण तीव्र होगा, आपके अंदर का ईश्वरीय अंश बढ़ेगा।
👉 ईश्वर दिव्य है वह आपके अन्दर दिव्यता लाना चाहता है। वह सत् है और वैसी ही प्रतिक्रिया आपके अन्दर चलाने की उसकी इच्छा होती है। आपके मन का मैल दूर हो, तो आपका जीवन ईश्वरीय मन मोहकता, दिव्यता का आकर्षण केन्द्र बन जाए और उसकी सुवास से आपका सारा वातावरण महक जाए।
👉 अपने भीतर समाविष्ट अमिट सत्य को पहचानिये, यह सत्य आपको संकीर्णता से मुक्त कर देगा। संसार की बदलती हुई गतिविधियों से, शरीर के नाना प्रकार के रूपों से तब आप दुःखी और विक्षुब्ध न होंगे। आपका जीवन हास्ययुक्त, चहकता और दमकता हुआ रहेगा। मूल बात आत्म-चेतना को पहचानना है जिससे आप मन को तमोगुण से बचा सकते हैं और मनुष्य जीवन को आनन्दमय बना सकते हैं।
👉 वह परमात्मा तेजस्वी, प्रकाशवान् और सम्पूर्ण मानसिक पीड़ाओं को नष्ट करने वाला है। उसे विकसित करने में ही आपका कल्याण है। भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा है-
यद्यद्विभूतिमत्सत्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।
तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजऽशसम्भवम्॥(गीता १०/४१)
“हे अर्जुन! इस जगत् में जो कुछ भव्य तेजस्वी तथा ऐश्वर्यवान् प्रतीत होता है वह मेरे ही तेज का अंश है। जो अपने अन्दर मुझ दैवी चेतना का अनुभव करते हैं मैं उनके बन्धन काट देता हूँ।”
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