🥀 १९ नवंबर २०२३ रविवार 🥀
➖🍁कार्तिक शुक्लपक्ष🍁➖
🥀〰️षष्ठी – सप्तमी २०८० 〰️🥀
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‼ऋषि चिंतन‼
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गुप्त बात केवल “मित्र” को ही बताएं
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👉 हर मनुष्य में कमजोरियाँ होती है, उसके चरित्र में दोष आते है। कुछ छिपाने योग्य बाते होती है। जिन सिद्धांत का वह प्रत्यक्षत: समर्थन करता है, परोक्ष रूप में चुपके चुपके उनसे विपरीत भी काम करता है। इस तरह की गुप्त बातें कुछ न कुछ हर व्यक्ति के संबंध में होती है। उन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकट किया जाए तो उस व्यक्ति की प्रतिष्ठा नष्ट होती है और समाज में घृणा का पात्र बनकर बदनाम होता है। यदि उन गुप्त बातों को वह अपने मन में ही छिपाये बैठा रहे तो मनोविज्ञानशास्त्र की दृष्टि में इसका उसके स्वास्थ्य पर भयंकर प्रभाव पड़ेगा। वह किसी नासूर, भगंदर, कुष्ठ, बवासीर, संग्रहणी, दमा सरीखे चिरस्थायी रोग का शिकार हो सकता है या स्मरणशक्ति का नाश, चिडचिडापन, अनिद्रा, हृदय की धड़कन, दु:स्वपन दीखना जैसे मानसिक रोग से ग्रस्त हो सकता है। मनोविज्ञान शास्त्र के आचायों की चिकित्सा प्रणाली में “मानसिक जुलाब” की सर्वोपरि आवश्यकता बताई है। वे कहते है कि पेट का जुलाब, इंद्रिय जुलाब, रक्त का जुलाब (फस्द खोलना, सिंगी जाक आदि) आदि जुलाबों से “मानसिक जुलाब” का महत्त्व बहुत अधिक है। अगर रोगी या अस्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन भर के सारे पापों, दोषों, बुराइयों, चोरियों, कुकमों का सच्चा सच्चा हाल अपने किसी मित्र पर प्रकट कर दे और एक भी बात छिपाकर न रखे, तो उसका मन बहुत ही हलका हो जाता है और शारीरिक तथा मानसिक व्यथाओं से छुटकारा पाने में इतनी सहायता मिलती है, जिसका मुकाबला संसार की कोई कीमती से कीमती औषधि नहीं कर सकती। सच्चे मित्र के सामने अपनी बुराइयों, कमजोरियों और भूलों को मनुष्य कह सकता है। वह बिना घृणा किये उन्हें सुन सकता है और गुप्त रख सकता है। इस प्रकार कमजोरियों और बुराइयों को गुप्त रखने से मनुष्य के मन पर जो अत्यंत हानिकर भार पड़ता है, वह विश्वसनीय साथी को सुना देने से अनायास ही हट जाता है। वे सच्चे मित्र जो आपस में एक-दूसरे की गुप्त बातें कह-सुनकर मन का भार हलका कर लेते हैं। वास्तव में एक-दूसरे के लिए जीवन मूरि के समान उपयोगी है। जिन परिस्थितियों में भूलें हुई उनका वास्तविक कारण जानकर उनके निराकरण का वास्तविक उपाय भी वह मित्र बता सकता है। गुरु के प्रति आदर भाव की मात्रा अधिक होने के कारण लज्जा या शिष्टाचारवश वे सब बातें नहीं कहीं जा सकतीं, पर सच्चा मित्र आसानी से जान लेता है और उन कमजोरियों को दूर करने का उचित एव सुलभ मार्ग बता सकता है। इस प्रकार वह गुरु का काम दे सकता है। श्रीकृष्ण जी अर्जुन के सच्चे मित्र थे, उन्होंने उसके गुरु का काम भी किया। ऐसे सच्चे मित्रों के लिए “सखा” शब्द का प्रयोग करना उपयुक्त है।
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