🥀०७ नवंबर २०२३ मंगलवार🥀
!!कार्तिक कृष्णपक्ष दशमी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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प्रकृति की मानें और स्वस्थ रहें
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👉 यदि आप प्रकृति को अपनी बुद्धिमती माता मान लें और उसके आदेशों पर चलना स्वीकार करें, तो विश्वासपूर्वक यह कहा जा सकता है कि आप भी उसी प्रकार स्वस्थ रह सकते हैं जैसे सृष्टि के अन्य जीव-जंतु नीरोग शरीर लेकर किलकारियाँ मारते फिरते हैं। आप स्वास्थ्य चाहते हैं, तो उसकी तलाश भीतर कीजिए, अंतर्दृष्टि से इस बात का पता लगाइए कि प्रकृति माता की किन- किन आज्ञाओं की अवहेलना कर रहे हैं और अपने साथ क्या-क्या ज्यादतियाँ हो रही है ? जिनका पता चलता जाए उन्हें बिना एक पल की देर किए तुरंत ही छोड़ दीजिए। उलटे मार्ग पर चल रहे हैं, जिस क्षण इस बात का पता चले उसी क्षण खड़े हो जाइए, और वहाँ से वापस लौटकर फिर सीधे मार्ग पर चलना आरंभ कर दीजिए।
👉 “आहार” और “विहार” स्वास्थ्य के इन दो स्तंभों का गंभीरतापूर्वक निरीक्षण करके पता लगाइए कि इसके संबंध में हम कहाँ लापरवाही कर रहे हैं ? आहार के बारे में प्रकृति के आदेश बहुत ही स्पष्ट होते हैं, उन्हें सुनने और समझने में कुछ भी कठिनाई नहीं पड़ती। “भोजन कब करना चाहिए” ? इसका स्पष्ट उत्तर यह है कि- “जब पेट माँगे, जोर की भूख लगे।” बिना भूख न खाना एक ऐसा स्वर्ण सिद्धांत है जो निरोगिता की जीवनभर रक्षा कर सकता है।* जब तक कड़ाके की भूख न लगे, कुछ मत खाइए। पेट जब तक पिछले काम को समाप्त न कर ले, तब तक उस पर नया बोझ मत डालिए आपका नौकर बताए हुए काम को कर रहा है, वह काम तो पूर हुआ नहीं, तब तक नया काम और दे दिया। पिछले दो काम पूरे हो नहीं पाए थे कि तीसरा काम फिर पटक दिया। फल यह होता है कि नौकर एक भी काम को अच्छी तरह नहीं कर पाता, सब काम अधूरे पड़े रहते हैं। काम की भरमार से करने वाले की शक्ति बहुत अधिक खरच हो जाती है, जिससे वह और कामों को भी जल्दी और ठीक समय पर करने में असमर्थ हो जाता है। भूख न लगने पर भी खाना, पेट के साथ बेइंसाफी करना है, चटोरे आदमी यह नहीं देखते कि पचाने वाले को नए काम की जरूरत है या नहीं। वे अंधाधुंध ठूंसते चलते हैं। एक पतीली में चावल पकाने रखा जाए, उसमें बीस-बीस मिनट बाद दो-दो मुट्ठी नए चावल डालते जाएँ, तो परिमाण यह होगा कि कुछ चावल तो जरूरत से ज्यादा पककर घुल जाएँगे, कुछ अधपके रहेंगे, कुछ बिलकुल कच्चे, इस प्रकार पकाया हुआ भात किसी को पसंद न आएगा, पेट में आधा कच्चा, आधा पक्का जमा करते जाना बहुत ही अनुचित है। नियत समय पर भोजन कर लीजिए और फिर तब तक एक दाना भी मुँह में मत जाने दीजिए, जब तक कि पेट को नए भोजन की जरूरत न हो। पुराना काम समाप्त कर लेने पर नया काम दीजिए।
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