Express inner Feelings | मनोगत भावों को व्यक्त कीजिए

🥀 २२ नवंबर २०२३ बुधवार 🥀
!!कार्तिक शुक्लपक्ष दशमी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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मनोगत भावों को व्यक्त कीजिए
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👉 मनोगत भावों को भले प्रकार, उचित रीति से प्रकट कर सकने की योग्यता एक ऐसा आवश्यकीय गुण है, जिसके बिना जीवन विकास में भारी बाधा उपस्थित होती है। आपके मन में क्या विचार हैं, क्या इच्छा करते हैं, क्या सम्मति रखते हैं, जब तक यह प्रकट न हो, तब तक किसी को क्या पता चलेगा ? मन ही मन कुडकुड़ाने से दूसरों के संबंध में भली-बुरी कल्पनाएँ करने से कुछ फायदा नहीं, आपको जो कठिनाई है, जो शिकायत है, जो संदेह है, उसे स्पष्ट रूप से कह दीजिए। जो सुधार या परिवर्तन चाहते हैं उसे भी प्रकट कर दीजिए। इस प्रकार अपनी विचारधारा को जब दूसरों के सामने रखेंगे और अपने कथन का औचित्य साबित करेंगे, तो मनोनुकूल सुधार हो जाने की बहुत कुछ आशा है।
👉 भ्रम का, गलतफहमी का सबसे बड़ा कारण यह है कि झूठे संकोच की झिझक के कारण लोग अपने भावों को प्रकट नहीं करते, इसलिए दूसरा यह समझता है कि आपकी कोई कठिनाई या असुविधा नहीं है, जब तक कहा न जाए तब तक दूसरा व्यक्ति कैसे जान लेगा कि आप क्या सोचते हैं और क्या चाहते हैं ? अप्रत्यक्ष रूप से, सांकेतिक भाषा में विचारों को जाहिर करना केवल भावुक और संवेदनशील लोगों पर प्रभाव डालता है, साधारण कोटि के हृदयों पर उसका बहुत ही कम असर होता है, अपनी निजी गुत्थियों में उलझे रहने के कारण, दूसरों की सांकेतिक भाषा को समझने में वे या तो समर्थ नहीं होते या फिर थोड़ा ध्यान देकर फिर उसे भूल जाते हैं। अक्सर बहुत जरूरी कामों की ओर पहले ध्यान दिया जाता है और कम जरूरी कामों को पीछे के लिए डाल दिया जाता है। संभव है आपकी कठिनाई या इच्छा को कम जरूरी समझकर पीछे डाला जाता हो, फिर कभी के लिए टाला जाता हो, यदि सांकेतिक भाषा में मनोभाव प्रकट करने से काम चलता न दिखाई पड़े, तो अपनी बात को स्पष्ट रूप से नम्र भाषा में कह दीजिए, उसे भीतर ही भीतर दबाये रहकर अपने को अधिक कठिनाई में मत डालते जाइए।
👉 संकोच उन बातों के कहने में होता है, जिनमें दूसरों की कुछ हानि की या अपने को किसी लाभ की संभावना होती है। ऐसे प्रस्ताव को रखते हुए झिझक इसलिए होती है कि अपनी उदारता ! और सहनशीलता को धब्बा लगेगा, नेकनीयती पर आक्षेप किया जाएगा या क्रोध का भाजन बनना पडेगा। यदि आपका पक्ष उचित, सच्चा और न्यायपूर्ण है, तो इन कारणों से झिझकने की कोई आवश्यकता नहीं है, हाँ, अनीतियुक्त माँग कर रहे हों तो बात दूसरी है। यदि अनुचित या अन्याययुक्त आपकी माँग नहीं है, तो अधिकारों की रक्षा के लिए निर्भयतापूर्वक अपनी माँग को प्रकट करना चाहिए। हर मनुष्य का पुनीत कर्तव्य है कि मानवता के अधिकारों को प्राप्त करें, और उनकी रक्षा करें केवल व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए नहीं, वरन् इसलिए भी कि अपहरण और कायरता, इन दोनों घातक तत्त्वों का अंत हो।
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