🥀१३ अक्टूबर २०२३ शुक्रवार🥀
!! अश्विन कृष्णपक्ष चतुर्दशी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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हम वहीं बनेंगे, जैसा विचार करेंगे
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👉 समानता वाले दो पदार्थ एक दूसरे को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सृष्टि का यह नियम स्थायी और शाश्वत है। हम अपने जीवन के अनुकूल विचारों और शक्तियों को अदृश्य जगत् से आकर्षित करते और स्वयं भी उनकी ओर खिचते रहते हैं।हमारे विचार जितने सत्य और सत् होंगे, हम सत्य और सत् तत्त्वों को अपनी ओर उतना ही आकर्षित करेंगे और स्वयं भी उनकी और आकर्षित होंगे। इसके विपरीत असत्य एव असद् विचारों के कारण हम अवांछनीय तत्त्वों को आकर्षित करते और उनकी ओर बढ़ते जाते हैं। “आत्म-विकास” अथवा “आत्म-निर्माण” का दूसरा नाम “विचार” निर्माण ही है।
👉 हम जितने ही कुशल “विचार-शिल्पी” होंगे, हमारी आत्मा का निर्माण उतना ही सुन्दर और स्थायी होगा। अपनी आत्मा का साक्षात्कार भी हम विचारों के द्वारा ही कर सकते हैं। विचारों के आदर्श में ही आत्मा का रूप प्रतिबिम्बित होता है और विचार चक्षुओं से ही उसके दर्शन किये जा सकते हैं। “विचार” जितने उज्ज्वल और पवित्र होंगे, आत्मा का प्रतिबिम्ब उतना ही स्वच्छ और स्पष्ट दृष्टिगोचर होगा।
👉 “आत्म-चिन्तन” जिसे “आत्म-ज्ञान” का उपाय माना गया है, अपने प्रति विचार करना ही तो है। विचार-शक्ति के द्वारा ही हम अपने प्रति किसी स्थायी प्रतीति का सृजन कर सकते हैं। “विचार” ही वह माध्यम है जो आत्मा और परमात्मा के बीच सम्बन्ध-सूत्र की भूमिका पूरी किया करते हैं। अपने “विचारों” को “विचार” द्वारा देखिये और पता लगाइये कि आप किस स्थिति में हैं। आपका जीवन-यान ठीक उस पथ पर अग्रसर हो रहा है या नहीं जो परमात्म-तत्त्व की प्राप्ति के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर जाता है। यदि ऐसा है तो निरन्तर चलते जाइये और यदि कोई त्रुटि है तो रुकिये और अपने जीवन यान का दृष्टिकोण बदल कर ठीक दिशा में नियोजित कर लीजिये।
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