The Power Of Morale : A Divine Experience | मनोबल की शक्ति : एक दैवी अनुभूति

🥀 ०२ फरवरी २०२४ शुक्रवार🥀
🍁माघ कृष्णपक्ष सप्तमी २०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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मनोबल की शक्ति : एक दैवी अनुभूति
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👉 साधनों के आधार पर सफलताएँ मिलती हैं । साधनों को ही “बल” भी कहते हैं । प्रत्यक्ष बलों में धनबल, बाहुबल, शस्त्रबल, बुद्धिबल आदि प्रमुख हैं, पर इन सबसे बढ़कर है “मनोबल” । “मनोबल” का तात्पर्य शिक्षा की कल्पना, बहुज्ञता, अनुभवशीलता से नहीं वरन् “दृढ़ निश्चय” से है । यह यदि आदर्शों के निमित्त प्रयोग किया जाता है तो उसी को “संकल्प बल” भी कहते हैं । जिसकी “संकल्प शक्ति” जितनी बलवान है, उसे उतने ही स्तर का “बलवान” कहना चाहिए । किसी-किसी में यह शक्ति जन्मजात भी होती है, पर यह आवश्यक नहीं । उसे अभ्यास से बढ़ाया जा सकता है । छोटे कामों में हाथ डालना और उन्हें पूरा करके ही चैन लेना, यह “मनोबल” बढ़ाने का तरीका है । एक के बाद दूसरा काम हाथ में लेना और उसकी कठिनाइयों से निपटना यही है वह मार्ग जिस पर चलते हुए मनोबल अर्जित किया जा सकता है। यह विभूति जिसके हाथ लग गई समझना चाहिए कि महामानव बनने का सूत्र उसके हाथ लग गया ।
👉 प्रायः देखा जाता है कि बहुत साधन होते हुए भी लोग साधारण से काम भी नहीं कर पाते । इनके विचार डगमगाते रहते हैं । जो काम हाथ में लिया है वह उचित भी है या नहीं, अपने से बन पड़ेगा या नहीं, ऐसे विकल्प मन में उठते रहते हैं । कच्चा मन एक को छोड़ दूसरा काम हाथ में लेता है । कुछ दिन बाद दूसरा भी हाथ से छूट जाता है और तीसरे को अपनाते हैं । इस तरह अनिश्चय की दशा में शक्ति का अपव्यय होता रहता है । दिशा निश्चित न होने पर कुछ दूर पूर्व को, कुछ उत्तर-पश्चिम-दक्षिण को चलने वाले दिन भर घोर परिश्रम करते रहने पर भी थकान सिर पर ओढ़ते हैं अच्छा यही है कि पहले ऊँच-नीच के हर पहलू पर विचार कर लिया जाए । बुद्धिपूर्वक जो निश्चय निकले उसे दृढ़ता पूर्वक अपनाया जाए ।
👉 काम देखने को शरीर से किया जाता प्रतीत होता है, पर वास्तविकता यह है कि वह “मन” में होता है । “मनोयोग” लगा देने से योजना के सब पक्ष सामने आते हैं अन्यथा बाल कल्पनाएँ मन में उठती रहतीं और पानी के बबूले की तरह अस्त-व्यस्त होती रहती हैं। बच्चे सारे दिन उछलकूद करते रहते हैं।
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