उच्चस्तरीय परमार्थ या निम्नस्तरीय स्वार्थ जिसे चाहें उसे चुन लीजिए | Choose Whatever You Want, High Altruism Or Low Level Selfishness

🥀 ०७ फरवरी २०२४ बुधवार🥀
🍁माघ कृष्णपक्ष द्वादशी २०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖उच्चस्तरीय परमार्थ➖ या
➖निम्नस्तरीय स्वार्थ➖
➖जिसे चाहें उसे चुन लीजिए➖
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👉 जीवन के यह दो ही उपयोग हो सकते हैं, “पहला” तृष्णा और वासनाओं के जंजाल में जकड़ा हुआ इतना व्यस्त जीवन जिसमें आत्म-कल्याण की साधना के लिए न इच्छा जगे और न अवकाश मिले। “दूसरा” वह जिसमें सीमित आकांक्षाओं के साथ संतोषपूर्वक समय गुजारते हुए कर्मयोगी की तरह संसार के प्रस्तुत उत्तरदायित्वों को शांतिपूर्वक निबाहते हुए परमार्थ का भी संपादन कर लिया जाए । निश्चित रूप से दूसरा जीवनक्रम अधिक दूरदर्शितापूर्ण एवं अधिक लाभदायक है। किंतु आश्चर्य और खेद की बात है कि आज हम सब उस जीवनक्रम को अपनाए हुए हैं जिसमें अशांति, बरबादी और पश्चात्ताप के अतिरिक्त और कुछ मिलने वाला नहीं है।
👉 तुलनात्मक दृष्टि से इन दोनों प्रकार के जीवनक्रमों पर विचार किया जाना चाहिए और सोचा जाना चाहिए कि लाखों-करोड़ों वर्ष बाद मिले हुए मानव-जीवन का सदुपयोग करने की समस्या का हल करना आवश्यक है या नहीं? अन्य अनेक साधारण समस्याओं को हल करने में कितना सोच-विचार किया जाता है और उसका कारगर हल ढूँढ़ निकाला जाता है। कितने खेद की बात है कि करोड़ों करोड़ रुपयों से अधिक मूल्यवान इस सुरदुर्लभ मानव-जीवन के सदुपयोग का प्रश्न हम उपेक्षा के कूड़े में ही पटके रहते हैं। यह उपेक्षा एक दिन कितनी कष्टकारक, कितनी पश्चात्ताप भरी वेदना उत्पन्न करती है, इसका अनुमान यदि आज लगाया जाना संभव हो सके तो निश्चय ही इस भूल को आज ही सुधार लिया जाए।
👉 आवश्यक कार्यों से सदा फुरसत मिल जाती है। जो कम महत्त्व के होते हैं उन्हें पीछे के लिए छोड़कर मनुष्य आवश्यक कार्यों को हाथ में लिया करता है। यदि स्त्री या बच्चा सख्त बीमार हो तो कितने ही लोभ के काम को छोड़कर उनकी चिकित्सा तथा परिचर्या में लगना पड़ता है। व्यस्त आदमियों को भी अपने स्वजनों की जीवन रक्षा के लिए बहुत समय लगाने में कुछ कठिनाई नहीं होती। जिस कार्य को मनुष्य आवश्यक और उपयोगी समझता है उसके लिए व्यस्तता के अगणित कामों को पीछे के लिए धकेल कर उस महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले कार्य के लिए समय निकालता है। “आत्म-कल्याण” के लिए यदि फुरसत नहीं मिलती तो इसका अर्थ केवल इतना ही है कि “इस कार्य को सबसे व्यर्थ, सबसे कम उपयोगी माना गया है और “उपेक्षा” के “कबाड़खाने” में पटक दिया गया है।” महत्त्वपूर्ण समझे जाने वाले कार्य सदा प्राथमिकता प्राप्त करते हैं, उनके लिए तुरंत समय निकलता है। समय का अभाव आमतौर से उन्हीं बातों के लिए रहता है जिन्हें हम “महत्त्वहीन”, “अनुपयोगी,” “बेकार” की बात समझते हैं।
👉 “आत्म-कल्याण” को इतना उपेक्षणीय मानना, फुरसत न रहना और शरीर-मन को प्रसन्न करने के लिए चौबीसों घंटे लगे रहना क्या यही नीति हमारे लिए उचित है ? क्या इसी से हमारा जीवन लक्ष्य सफल हो सकेगा ? यह विचारणीय प्रश्न है। इसको सुलझाने में हम जितनी शीघ्रता करें, जितना सही निष्कर्ष निकाल लें, उतनी ही हमारी भलाई है।
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