〰️सुखी रहने का सही तरीका〰️
➖👁️सही दृष्टिकोण👁️➖
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👉 आज का व्यक्ति समस्याओं के जाल में दिन-दिन जकड़ता चला जा रहा है। क्या धनी, क्या निर्धन, क्या विद्वान, क्या अशिक्षित, क्या रुग्ण तथा स्वस्थ सभी स्तर के मनुष्य अपने को अभावग्रस्त और संकटग्रस्त स्थिति में पाते हैं। भूखे का पेट दर्द-दूसरी तरह का और अतिभोजी का दूसरे ढंग का; पर कष्ट पीड़ित तो दोनों ही समान रूप से हैं।
👉 भौतिक दृष्टि से विज्ञान ने मनुष्य के लिए अगणित प्रकार की प्रचुर साधन-सुविधाएँ उपलब्ध करा दी हैं। अब से कुछ शताब्दियों- पूर्व लोग कहीं लंबी यात्रा पर निकलते थे, तो यह मानकर चलते थे कि पता नहीं अब लौटकर परिवार वालों को देख भी सकेंगे या नहीं। इसलिए वे यात्रा पर निकलते समय परिवार की व्यवस्था इस प्रकार बनाकर चलते थे, मानो अब उनकी आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी। पर अब तो मनुष्य कुछ ही दिनों में चंद्रमा की यात्रा करके भी सकुशल वापस लौट आने में समर्थ है। कहने का आशय यह कि प्राचीनकाल की तुलना में आज साधन-सुविधाओं में आकाश-पाताल जितना अंतर हो गया है। इसे कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता।
👉 साधनों के विकास और सुविधाओं के अंबार लग जाने पर यह होना चाहिए कि मनुष्य सुखी रहता। लेकिन देखते हैं, मनुष्य पहले की तुलना में और भी ज्यादा दुःखी और संकटग्रस्त हो गया है। उसके चारों ओर समस्याओं का जाल जकड़ता जा रहा है। सभी कोटि के मनुष्य अपने को अभावग्रस्त और संकटग्रस्त स्थिति में अनुभव करते हैं। व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन और संसार के सभी क्षेत्रों में समस्याएँ ही समस्याएँ बिखरी पड़ी हैं। विभिन्न वर्ग के विभिन्न स्तर के व्यक्तियों की समस्याएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। वे एक-दूसरे से किसी रूप में संबद्ध भी नहीं लगतीं, पर उनके मूल में यदि देखा जाय तो एक ही कारण प्रतीत होगा वह है-“अनात्मवादी दृष्टिकोण”।
👉 प्रकाश की अनुपस्थिति का नाम ही अंधकार है। जब प्रकाश बुझ जाता है तो अंधकार आ जाता है और जब प्रकाश फैलने लगता है तो अंधकार भाग जाता है। इन दिनों साधन-सुविधाओं की दृष्टि से पर्याप्त प्रगति हुई है, पर जिस आधार पर सुख-शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है, उस “दृष्टिकोण” का अभाव ही समस्याओं का कारण बना हुआ है। अंधकार को दूर भगाने के लिए कितने ही साधन जुटाए जाएँ, कितनी ही तैयारियां की जाएँ, जब तक प्रकाश फैलाने का प्रयास न किया जाय, तब तक अंधकार बना ही रहेगा। कितने ही साधन इकट्ठे कर लिए जाएँ, कितनी ही सुविधाएँ बढ़ा ली जाएँ, पर “अनात्मवादी” दृष्टिकोण को निरस्त करने के लिए जब तक “अध्यात्म” की ज्योति नहीं जगाई जायेगी, तब तक वे प्रयास व्यर्थ ही होते चले जायेंगे।
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