🥀 १६ मार्च २०२४ शनिवार🥀
🍁फाल्गुनशुक्लपक्षसप्तमी२०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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इन निषेधात्मक दुर्गुणों से बचिए
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👉 मानवीय स्वाभिमान के लिए कलंकस्वरूप अनेक निषेधात्मक दुर्गुण हैं। मानवोपम गरिमा की प्रतिष्ठापना, उच्चस्तरीय आदर्शों का समाज में प्रचलन आदि मानवीय स्वाभिमान के मानक हैं। धर्म के प्रति कर्त्तव्यों की उपेक्षा, उन्मुक्तता के कारण ही निरादर्शयुक्त परिस्थिति का निर्माण हुआ है। इस स्थिति से उबरना ही पड़ेगा। अनीति एवं अनाचार मानवीय पुरुष के लिए, उसके स्वाभिमान के लिए एक चुनौती है। अपनी मानवता, अपने स्वाभिमान की रक्षा इदमेत्थम् कर्त्तव्य है।
👉 नीति का पालन करना जितना अच्छा है, उतना ही अनीति को सहन करना, मूकदर्शक बने देखते रहना अनुचित एवं कायरता का लक्षण है। विचारशील लोगों को यह तथ्य भली भाँति समझ लेना चाहिए कि पाप सहन करने की नीति ने ही उच्छृंखलता एवं अधर्म को बढ़ाया है। बात को गई-गुजरी कर देना प्रकारांतर से उसका समर्थन, परिपोषण और अभिवर्द्धन करने के समान है। “मन्यु”- अनीति के प्रति आक्रोश खड़ा न हो तो समझना चाहिए ऐसा समाज पौरुषहीन है।
👉 सतर्कता के अभाव में उदंडता बढ़ती है; यह तथ्य भली भाँति ध्यान में रखना चाहिए। विश्वास करना अच्छी बात है, पर साथ ही यह भी ध्यान रखने योग्य है कि विश्वास के पीछे कहीं अविश्वसनीय तत्त्व तो नहीं पनप रहे हैं। चोरों की घात तभी लगती है, जब घर के लोग बेखबर और निश्चित रहते हैं। सतर्कता का अर्थ अविश्वास या आक्षेप नहीं है, वरन यह है कि अपनी कुशलता जीवित रहे और सामने वालों पर किसी प्रकार का संदेह करने की गुंजाइश न रहे। जहाँ देख-भाल नहीं रहती या खतरे की आशंका नहीं की जाती, वहीं भोलेपन का अनुचित लाभ उठाया जाता है। व्यवहारकुशल व्यक्ति आरंभ से ही ऐसी व्यवस्था बनाते हैं, जिसमें अनावश्यक विश्वास करने या अप्रत्याशित विश्वासघात होने की गुंजाइश ही न रहे। ऐसे सतर्क व्यक्ति स्वयं हानि उठाने से बच जाते हैं और दूसरों को पतन के गर्त में गिराने एवं बदनाम होने के निमित्त नहीं बनते।
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