सेठ मुरलीधर जी ने अपना घर बनवाना शुरू किया तो उनके बराबर में पड़े प्लाट के मालिक ओमप्रकाश जी ने मुरलीधर जी से अकेले में प्रार्थना की कि यदि वे उनके प्लाट साइड वाली दीवार के इस्तेमाल की अनुमति दे देंगे तो वे भी उनके बराबर में दो कमरे बना कर अपने परिवार के रहने लायक ठिकाना बना लेंगे।एक दीवार के निर्माण का खर्च बच जायेगा।
ओमप्रकाश जी एक सामान्य आर्थिक स्थिति में थे,बस खाने रहने लायक ही कमाई थी।उनके पिता ने कभी सस्ते में एक प्लाट खरीद लिया था,पर उसमें न तो उनके पिता मकान बनवा पाये और न जी ओमप्रकाश जी।जब सेठ मुरलीधर जी ने अपना मकान बनवाना शुरू किया तो उन्हें लगा कि अपने घर का साया तो होना ही चाहिये।इसी उमंग उत्साह में उन्होंने मुरलीधर जी उनकी दीवार के इस्तेमाल की बात कर ली।मुरलीधर जी पैसे वाले भी थे और दिलवाले भी।उन्होंने दीवार इस्तेमाल की अनुमति भी दी और साथ ही कहा कि ओमप्रकाश जी अब आप और हम पड़ौसी हैं, यदि कोई अन्य सहायता की आवश्यकता हो तो झिझकना नही,बता देना।
ओमप्रकाश जी का हौसला बढ़ा और उन्होंने जहां दो कमरों के साधारण से घर बनाने की कल्पना की थी,बनाते बनाते सीमा से अधिक खर्च कर बैठे और पूर्ति के लिये ब्याज पर कर्ज ले लिया।चूंकि मुरलीधर जी तो पैसे वाले थे सो उन्होंने तो मकान क्या कोठी का निर्माण कर लिया,जबकि ओमप्रकाश जी बेचारे कर्जमंद होकर भी उनकी कोठी के सामने मामूली सा मकान ही बना सके।उन्हें मुरलीधर के सामने आने में भी हिचक होती थी।उनके मन मे ग्रन्थि थी कि मुरलीधर जी बड़े आदमी है और वे मामूली।
समय बीतता गया,एक दिन मुरलीधर जी दीवार के उस ओर ओमप्रकाश जी के यहां से रुदन जैसी आवाज सुनाई दी।उन्हें अनहोनी की आशंका हुई ।वे छत पर गये वहां से ओमप्रकाश जी का आँगन साफ दिखायी देता था।उन्होंने झांककर देखा तो ओमप्रकाश जी अपनी पत्नी से छत पर ही अकेले बतिया रहे थे।पत्नी अपनी आवाज को दबाकर रो रही थी।उन्होंने दीवार से कान लगा सुनने की कोशिश की।तो पता लगा ओमप्रकाश जी कर्ज न चुका पाने और तकादे के कारण पड़ने वाले दवाब तथा बेइज्जती से बचने के लिये आत्महत्या करने की बात कर रहे थे,पति पत्नी दोनो ने आत्महत्या का इरादा कर लिया था। अपने पांच वर्षीय बच्चे को उन्होंने अगले दिन उसके मामा के यहां छोड़ने के बाद इस कदम को उठाने का निश्चय कर लिया।मुरलीधर जी धक से रह गये।वे जानते थे कि सहायता की पेशकश ओमप्रकाश स्वीकार नही करेंगे क्योंकि उनकी सहायता को एक कर्ज के बदले दूसरा कर्ज समझेंगे।तो क्या किया जाये?
मुरलीधर जी ने सुबह ही ओमप्रकाश जी के यहाँजाने का निर्णय कर लिया।वहां जाकर उन्होंने ओमप्रकाश जी के सामने प्रस्ताव रखा कि भाई जी मैंने सुना है आप अपना घर बेच रहे हो।ओमप्रकाश जी को लगा कि उन्होंने इस विकल्प पर तो विचार किया ही नही था।मुरलीधर जी बोले देखो भाई आपका घर और मेरा घर बराबर बराबर में है,मेरे दो बेटे है,मैं चाहता हूं कि दूसरे बेटे के लिये भी घर बनवा दू।पर बेटा तीन वर्ष बाद आयेगा।मेरा प्रस्ताव है कि मैं आपको इस घर के अग्रिम रूप में दो लाख दे देता हूँ।दो वर्ष बाद आपको यह घर हमारे नाम लिखना होगा या आप मेरे दो लाख वापस कर अपना घर अपने पास रख सकते हैं।मेरा इस प्रस्ताव का मकसद मात्र यह है कि आप किसी अन्य को घर न बेचे।
ओमप्रकाश जी की आंखों में तो आंसू आ गये, बैठे बिठाये उन्हें दो वर्ष के लिये बिना ब्याज के दो लाख मिल रहे थे।मुरलीधर जी ने दो लाख रुपये ओमप्रकाश जी के सामने रख विदा ले ली।दीवार के कान ने दो जिंदगी बचा ली थी।एक कल्पित दूसरे बेटे की कहानी बना कर मुरलीधर जी ओमप्रकाश जी के स्वाभिमान और हिचक को दूर कर उनकी निस्वार्थ सहायता कर एक आत्मिक शांति का अनुभव कर रहे थे।