इच्छा करना पाप नहीं है इच्छा की निकृष्टता पाप है || Desire Is Not A Sin The Degradation Of Desire Is A Sin

🥀 २६ अप्रैल २०२४ शुक्रवार🥀
🍁वैशाख कृष्णपक्ष तृतीया२०८१🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖इच्छा करना पाप नहीं है➖
👉इच्छा की निकृष्टता पाप है👈
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👉 मनुष्य में “इच्छा” का उदय होना कोई अस्वाभाविक प्रक्रिया नहीं है। मनुष्य स्वयं ही उस विराट एवं पुराण पुरुष की इच्छा का परिणाम है, तब उसका इच्छुक होना सहज स्वाभाविक है। जहाँ “इच्छा” नहीं, वहाँ सृजन नहीं, विकास नहीं, उन्नति और प्रगति नहीं। जिसकी इच्छाएँ मर चुकी हैं वह जड़ है, निर्जीव है, श्वास वायु के आवागमन का एक यंत्र मात्र ही है। जो इच्छुक नहीं, वह निष्क्रिय है, निकम्मा है और निरर्थक है। इसके साथ ही यह भी कहा जा सकता है, जो चेतन है, प्राणी है वह इच्छा से रहित नहीं हो सकता। खाने-पीने, चलने-फिरने आदि और यदि और कुछ नहीं तो जीने की इच्छा तो करेगा ही और किन्हीं कारणों से जिसे जीने की भी इच्छा नहीं है, तो मरने की इच्छा तो रखता ही होगा। आशय यह है कि क्या मनुष्य, क्या जीव-जंतु, क्या कीट-पतंग और क्या स्वार्थी- परमार्थी, मोही, मुमुक्षु, पंडित, विद्वान, मूर्ख, स्त्री-पुरुष, बालक और वृद्ध सभी में अपनी-अपनी तरह की कुछ न कुछ इच्छा अवश्य रहती है। इच्छा जीवन का एक ज्वलंत सत्य है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता। यदि जीवों में अपनी मौलिक इच्छाएँ न भी जन्म लें तो भी भोजन, जल, निद्रा तथा मैथुन आदि की नैसर्गिक इच्छाएँ तो उसमें वर्तमान ही हैं।
👉 मनुष्य में यदि “इच्छा” का उदय न हो तो संसार का विकास ही रुक जाए। इच्छा ने ही मनुष्य की विवेक, बुद्धि और सृजन शक्ति को उत्तेजित किया है, जिसके बल पर उसने ऊँचे-ऊँचे महल, लंबे-लंबे राजमार्ग, बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना की; विविध कला-कौशलों के साथ अच्छी से अच्छी सभ्यता-संस्कृतियों का विकास किया।
👉 “इच्छा” करना कोई पाप नहीं, पाप है – “इच्छा” का निकृष्ट होना, “इच्छा” करके उसकी पूर्ति का प्रयत्न न करना अथवा पूर्ति के लिए अनुचित उपायों और साधनों को प्रयोग में लाना।
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