🥀// २७ मई २०२४ सोमवार //🥀
🍁ज्येष्ठ कृष्णपक्ष चतुर्थी २०८१🍁
➖➖‼️➖➖ ‼ऋषि चिंतन‼
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परिवार की संजीवनी “नारी” में स्थित है
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👉 मनुष्यकृत संस्थाओं के अनेक नाम, रूप और क्रिया-कलाप सर्वत्र दीख पड़ते हैं । ईश्वरकृत संस्था एक ही है-“परिवार “। यह एक ऐसा नैसर्गिक संगठन है जिसके अंतर्गत छोटे और बड़े सभी को एक दूसरे से अपनी- अपनी आवश्यकता के अनुरूप अनुदान मिलते हैं। सभी एक दूसरे को बहुत कुछ देते हैं और बदले में उतना पाते हैं जो देने की तुलना में कम नहीं, अधिक ही होता है । इस संगठन की रज्जु श्रृंखला में बँधा परिवार का हर सदस्य मर्यादाओं को समझने और अनुशासन अपनाने का अभ्यास करता है । फलतः वह क्रमिक गति से अधिक सभ्य और सुसंस्कृत बनता जाता है, साथ ही समुन्नत और सुसम्पन्न भी ।
👉 परिवार संस्था की सूत्र संचालिका परमेश्वर ने “नारी” को बनाया है। वही पत्नी के रूप में एक नए परिवार का श्रीगणेश करती है। जननी के रूप में उसका विकास-विस्तार करती है। गृहणी के रूप में सुव्यवस्था के सूत्रों को संभालती है। अंततः वही है जो गृहलक्ष्मी के रूप में उस संस्था को नर रत्नों की खदान बना देती है। देव मानवों का निवास स्वर्ग कहा जाता है। ऐसे स्वर्ग की संरचना एक छोटे से घर-घरौंदे में कर सकना “नारी” का ही चमत्कार है । विधाता ने सृष्टि बनाई या नहीं, यह संदिग्ध है पर नारी द्वारा किसी भी घरौंदे को स्वर्ग बना सकने की संभावना सुनिश्चित है । भगिनी और पत्नी के रूप में सृष्टि की उस पवित्रतम कला और पारिजात जैसी सुषमा को देखकर किसकी अंतरात्मा पुलकित नहीं हो उठती ।
👉 “नारी” स्रष्टा की उत्कृष्टतम कृति है। उसमें सज्जनता और सहृदयता के वे तत्व भरे पड़े हैं जिन्हें पाकर प्राणी की अंतरात्मा कृत-कृत्य हो उठती है । आवश्यकता इस बात की है कि इस अमृत वल्लरी को विकसित होने और अपना कौशल दिखाने का अवसर दिया जाए। उसे मोड़ा और मरोड़ा न जाय । दबाने और जलाने से तो नारी ही नहीं मरेगी वरन् वह सब भी मरेगा जो इस सृष्टि में सुंदर-सुखद है, श्रेष्ठ कहा-समझा जाता है ।
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