आस्था मूलक नारी जीवन || The Faith-Based Life of Women

🥀// १३ जून २०२४ गुरुवार //🥀
🍁 ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष सप्तमी२०८१🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖आस्था मूलक नारी जीवन➖
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👉 जिस देवालय का “विग्रह” विखंडित हो वहाँ दर्शनों की परंपरा समाप्त हो जाती है । “खंडित देव प्रतिमा” के अंग-प्रत्यंग किसी प्रकार जोड़ भी दिए जायें तो भी देव शक्ति के निष्प्राण हो जाने की अवधारणा से दर्शनार्थी की श्रद्धा समाप्त हो जानी स्वाभाविक है। ऐसे देवालय खंडहर न भी हों तो भी वहाँ कोई जाता नहीं ।
👉 “गृहस्थ जीवन” भी ऐसा ही एक “देव मंदिर” है जिसका विग्रह “नारी” मानी गई है। वह शरीर से सँभली तो रहे किन्तु यदि उसका “हृदय भग्न” हो जाए तो गृहस्थ में निवास करने वाली शोभा, शांति, समृद्धि और प्रसन्नता के क्षणों का इस तरह तिरोधान हो जाता है जिस तरह “टूटी हुई प्रतिमा” के देव मंदिर से “दर्शनार्थी” गायब हो जाते हैं । प्रतिमा जिस प्रकार “श्रद्धा” का मूलाधार होती है उसी प्रकार “गृहस्थ जीवन” में आत्मीय सरसता का आधार “नारी” होती है उसे प्रतिबंधित रख कर यदि किसी ने आनंद मिश्रित वातावरण की कल्पना की तो उस जैसा अभागा कोई नहीं होगा ।
👉 “आज हमारे गृहस्थ देव मंदिर कुछ इसी तरह विग्रह-विखंडित हुए पड़े हैं।” वहाँ पुरुष भी हैं, नारियाँ भी । “किन्तु देवता और भक्त के बीच की श्रद्धा श्रृंखला टूट चुकी है।” उसे जोड़े बिना मंदिर की पवित्रता कैसे प्रतिष्ठित होगी ? “नारी जीवन के प्रति सामाजिक जीवन में आनंद, आदर और आस्था पैदा करके ही उस विसंगति को दूर किया जा सकता है ।” गृहस्थ मंदिर को भावनामय बनाया जा सकता है। “यह पुण्य कार्य आज से, अभी से अपने घर से आरंभ कर देना आवश्यक है ।”
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