नारी की वरिष्ठता स्वीकारें || Accept the Supremacy of Women

🥀// १५ जून २०२४ शनिवार //🥀
🍁 ज्येष्ठ शुक्लपक्ष नवमी२०८१🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖नारी की वरिष्ठता स्वीकारें➖
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👉 “नर” और “नारी” के युग्म में प्रकृतितः “वरिष्ठता” “नारी” की है। वही समस्त मनुष्य जाति को अपने उदर में से जन्म देती है। वह अपना लाल रक्त सफेद दूध के रूप में परिणत करती और बिना किसी प्रकार का अहसान जताए परिपूर्ण स्नेह-वात्सल्य के साथ उसे पिलाती है। छोटे से माँस पिंड को अपने समर्पण जल से सींचती और विकसित वृक्ष बनाकर मानव समाज की श्री समृद्धि बढ़ाती है। “अपनी भावना और गतिविधियों की दृष्टि से नारी सचमुच ही देवी है।” “माता” के रूप में संतान को वह जीवन प्रदान करती है । पिता के एक नगण्य से बिंदु कण को आत्म सत्ता से सींच कर उसे “सुयोग्य नागरिक” बना देना उसी का चमत्कार है। “पिता” को वह “नारी” के प्रति पवित्रता, मृदुलता, कोमलता और ममता उभारने के लिए गंगा जैसी निर्मलता का प्रतिनिधित्व करती हुई नन्हीं सी गुड़िया बनकर उसकी गोदी में खेलती है । “भाई” के लिए उसकी ममता, आत्मीयता, सरलता, सहृदयता देखते ही बनती है। “भाई” के लिए वह क्या सोचती है, उसे कितना चाहती है, किस दृष्टि से देखती है, इसका कोई सजीव चित्र बना सके तो प्रतीत होगा कि “प्रेम” की पवित्रता दुनियाँ में अन्यत्र ढूँढ़े भले ही न मिलती हो, पर “बहन” के मन में “भाई” के प्रति वह अभी भी विद्यमान है। “पति” के लिए वह स्वर्ग की ;;;अप्सरा से अधिक मनोरम, दाहिनी भुजा की तरह “साथी,” काया की तरह “सहचरी” और हृदय की धड़कन जैसी “जीवन दात्री” है। नारी के बिना नर की क्या स्थिति हो सकती है – इसका एक भावपूर्ण कथा-चित्र सती की मृत्यु के उपरांत शिव के विक्षिप्त हो उठने के कथानक से मिलता है । गृहस्थ में जिस ‘गृह’ को लक्ष्य माना गया है, वह कोई इमारत नहीं वरन् गृहिणी, घरवाली, “गृहलक्ष्मी” ही है। उसी के परिश्रम, अनुदान एवं सृजन प्रयत्न से नए परिवार का, नए वंश का शुभारंभ होता है ।
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