शारीरिक श्रम का महत्त्व समझिए |

🥀 ०२ जुलाई २०२४ मंगलवार 🥀
//आषाढ़ कृष्णपक्ष एकादशी २०८१ //
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‼ऋषि चिंतन‼
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शारीरिक श्रम का महत्त्व समझिए
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👉 अब से लगभग डेढ़ सौ वर्ष पहले रूस के एक लेखक ने, जो वास्तव में एक सामान्य किसान था, एक बड़े मार्के की बात लिखी थी- “मनुष्य को चाहिए कि वह अपना पसीना बहाकर उदर-पोषण करे।” यों सामान्य दृष्टि से देखने पर तो ये शब्द कोई विशेष महत्त्व के नहीं जान पड़ते। सैकड़ों लेखकों और सभी धर्मग्रंथों ने यह प्रतिपादित किया है कि “मनुष्य को अपने “श्रम” की कमाई से ही अपना निर्वाह करना चाहिए। ईमानदारी का पैसा चाहे वह थोड़ा ही क्यों न हो, सच्ची सुख और शांति प्रदान करता है, फलने-फूलने का अवसर देता है। इसके विपरीत हराम की कमाई चाहे ऊपर से बड़ी आकर्षक, शान-शौकत बढ़ाने वाली दिखाई दे, पर वह अंतःकरण को खोखला कर देती है और एक दिन उसका उपभोक्ता धूल में मिलता दिखाई देता है।
👉 “यद्यपि ये विचार सर्वथा सत्य और सराहनीय हैं, पर उस किसान का आशय कुछ भिन्न था।” “ईमानदारी” और “परिश्रम” की कमाई के सिद्धांत का पालन करते हुए भी कितने ही व्यक्ति केवल “मानसिक” या “बौद्धिक श्रम” करते हैं, पर “शारीरिक श्रम” से बिलकुल वंचित रहते हैं। वर्तमान समय में जो जितना विद्वान, योग्य, कार्यकुशल होगा, वह “शारीरिक श्रम” से उतना ही दूर रहेगा। समाज के बड़े नेता, शासन संचालक, उद्योग और धंधों के अध्यक्ष, प्रसिद्ध शिक्षा संस्थाओं के व्यवस्थापक, कला और साहित्य में नाम कमाने वाले लाखों व्यक्ति ऐसे हैं, जो वास्तव में अपनी ईमानदारी की, परिश्रम की कमाई खाते हैं, तो भी वे पसीना बहाकर उदर-पोषण करने की परिभाषा में नहीं आते । परिस्थितियों और वर्तमान परंपराओं के परिणामस्वरूप उनको हमेशा कुरसी पर बैठकर मानसिक या बौद्धिक कार्य ही करना पड़ता है और पसीना बहाने वाले किसी भी कठोर या कर्कश कार्य से उनका किसी प्रकार का संबंध नहीं रहता।
👉 यह सच है कि उपर्युक्त उच्च श्रेणी के कार्यों में संलग्न व्यक्ति प्रचलित सामाजिक नियमों और आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार ही इस मार्ग का अनुसरण करते हैं और प्रत्यक्ष शारीरिक श्रम से दूर रहकर भी अपने विचारानुसार समाज और जनसाधारण की बहुमूल्य सेवा करते रहते हैं। उनका कार्य समाज के लिए उपयोगी और आवश्यक भी माना जाता है “फिर भी यदि वे उपर्युक्त पसीना बहाने वाले वाक्य पर विचार करें और उसके महत्त्व को समझकर तदनुसार आचरण करें, तो वर्तमान परिस्थिति की अपेक्षा स्वयं अधिक लाभ उठा सकते हैं और समाज की भी अधिक उच्चकोटि की सेवा कर सकते हैं।
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