🥀 ०३ जुलाई २०२४ बुधवार 🥀
🍁 ➖आषाढ़ कृष्णपक्ष➖🍁
➖ द्वादशी / त्रयोदशी २०८१ ➖
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‼ऋषि चिंतन‼
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❗श्रम का कल्याणकारी सिद्धांत❗
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👉 जो व्यक्ति “श्रम” के कल्याणकारी सिद्धांत को समझ जाएगा। आर्थिक जगत की हानिकारक कृत्रिमता तथा झूठे सामाजिक दंभ को त्यागने के लिए निश्चय कर लेगा, उसे इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ेगी कि वह कौन सा काम करे ? यह कहना तो एक प्रकार की मूर्खता या कुतर्क होगा कि इस सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक सब प्रकार की सामग्री स्वयं पैदा करनी या बनानी चाहिए अर्थात किसान, जुलाहा, मोची, राज, बढ़ई, लुहार आदि के सब प्रकार के काम वह स्वयं ही करे। इस प्रकार की कार्य-प्रणाली तो हमको उसी हालत में पहुँचा देगी, जिसमें हम कुछ हजार वर्ष पहले रहते थे और जिसको अर्द्ध-सभ्य अवस्था कहा जाता है।
👉 “श्रम” का कल्याणकारी रूप यह है कि हम उसका आधार “सामाजिक सहयोग” को समझें न कि एक वर्ग की दूसरे के ऊपर विशिष्टता और श्रेष्ठता को। इस प्रकार का विभाजन विशेष सुविधा प्राप्त लोगों में यह भावना पैदा कर देता है कि हम अपने ही सुख के लिए खाते और सोते तथा अन्य कार्य करते हैं तथा हमारा स्वार्थ अन्य बहुसंख्यक लोगों से भिन्न है। इसके बजाय हमको परिश्रमी लोगों की यह मनोवृत्ति अपनानी चाहिए कि हमारा शरीर एक यंत्र की तरह है जिसे चलाने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है और इसलिए काम न करना और केवल खाते जाना एक लज्जाजनक तथा अपने तथा दूसरों, सबके लिए हानिकारक है। जिस प्रकार एक अग्निकांड उपयोगी वस्तुओं को भस्म तो कर देता है, पर बनाता कुछ भी नहीं, इसी प्रकार जो व्यक्ति केवल खाता है और कोई काम नहीं करता वह समाज के लिए एक अभिशाप, एक असह्य भार ही समझा जाना चाहिए ।
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