खोई हुई फ़ाइल

खोई हुई फ़ाइल

रास्ते भर गाड़ी चलाते हुए प्रिया का दिमाग जैसे फटा जा रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है कि बैंक की इतनी महत्वपूर्ण फाइल वो कैसे भूल सकती है कि कहाँ गई?
उसे बिल्कुल भी याद नहीं है कि वह कब घर पर लेकर आई। उसने पूरा घर ढूंढ लिया है, उसको घर में भी वह फाइल नहीं मिल रही। उस फाइल की असली जगह मैनेजर के केबिन में है लेकिन वहाँ भी नहीं मिल रही है तो सब का यही सोचना है की प्रिया भूल से अपने घर ले गई होगी ।
बहुत रिक्वेस्ट करने के बाद आज उसने थोड़ा जल्दी घर जाने की आज्ञा मैनेजर से ले ली है ताकि घर जाकर फिर से एक बार उस फाइल ढूंढ सके।
मैनेजर से मिली हुई डांट उसके दिमाग में बार-बार गूंज रही है-
“मिसेज प्रिया आपको अपने पद की सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए था, आप इतनी महत्वपूर्ण फाइल अपने घर क्यों लेकर गई? उसको मेरे केबिन के लॉकर में होना चाहिए था।”
आजकल जबकि सारा काम कंप्यूटर और सॉफ्ट कॉपी से हो जाता है फिर भी बहुत से ऐसे दस्तावेज है जिनकी हार्ड कॉपी की बहुत आवश्यकता रहती ही है; ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज उस फ़ाइल में है और अब वो गुम है।
घर पहुँच कर उसने सर दर्द की गोली खाई और लेट गई, उसको एक और कोशिश करनी है उस फ़ाइल को ढूंढने की और उसके लिए थोड़ा सा आराम बहुत जरूरी है।
लेटे हुए न जाने कितने विचार उसके मन-मस्तिष्क में घूमने लगे कि आखिर अब तक क्या वह अपनी सीमाओं को क्यों नहीं समझ पाई है?

बचपन से ही उसे हर मामले में उसकी सीमा-रेखा उसे समझाई जाती रही है-
बेटा खेलने की भी कोई सीमा होती है पढ़ाई भी करनी चाहिए।
स्कूल में अगर कोई साथी मजाक ज्यादा कर दे तो मजाक की भी कोई सीमा होती है इतना मजाक नहीं करना चाहिए।
जब पहली बार हॉस्टल में पढ़ने के लिए घर से दूर जाने लगी तो समझाया गया कि- बेटा घर की सीमाओं से दूर बाहर जा रही हो; हमेशा मर्यादा की सीमाओं का ध्यान रखना ।
जब विकास से दोस्ती हुई तो उसकी सहेलियों ने ही समझा दिया था कि- लड़कों के साथ दोस्ती एक सीमा तक ही ठीक होती है, अपने उजले दामन पर कोई धब्बा न लगने देना ।
रोज समाचार में देखती है देश की सीमा पर तनाव मुठभेड़ गोलीबारी, वहां भी तो एक सीमा-रेखा कायम है जिसके उलंघन का परिणाम अकसर युद्ध ही होता आया है।
आज तो बॉस ने ही बोल दिया कि उसे अपने पद की सीमाओं का ध्यान रखना चाहिए था।

“ओ माँ, क्या करूं बचा लो मुझे……….” परेशानी में उसके मुँह से जोर से निकला ।
माँ बिस्तर पर उसके पास आकर बैठ गई और उसे गले लगाकर बोली-
“देखो बेटा तुम को बुखार भी हो गया है……किसी भी परेशानी में परेशान हुए बिना शांति से निपटना सीखो……..ऐसा करोगी तब सब कुछ आसान हो जाएगा । एक बार उन कागजों को अपनी नियत जगह पर फिर से शांति से ढूंढो शायद वही हो जहां उनको होना चाहिए और हाँ हर बात में माँ-माँ करके रोना बंद करो; तुम बड़ी हो गई हो।”
इतना समझा कर, उसका माथा चूम कर माँ कमरे से बाहर चली गईं ।

अचानक उसकी आँख खुल गई उसको पता ही नहीं चला कब आँख लग गई थी, वह भौचक कमरे में चारों तरफ देखने लगी कि माँ कहाँ से आ गई? उनको गए हुए तो दो साल हो गए हैं।
“ये क्या सपना था? हाँ सपना ही था……..सच तो हो नहीं सकता।” उसने हैरत में अपने आप से कहा।

फिर वही सवाल सीमा-रेखा के बारे में…….तो क्या आत्माओं का जुड़ाव और पर अलौकिक शक्तियां सभी सीमाओं से परे हैं? कैसे मेरी एक पुकार पर माँ परलोक से दौड़ी चली आई।
अब उसके मन में थोड़ी शांति की अनुभूति है उसको महसूस हो रहा है; हो ना हो वह फाइल मैनेजर के चैंबर में ही होगी एक बार फिर ढंग से ढूंढनी पड़ेगी।
यह सोचते हुए प्रिया उठ कर अपने काम में लग गई, उसके मन-मस्तिष्क का बोझ बहुत हद तक हल्का हो चुका था।