धर्म और विज्ञान दोनों महत्त्वपूर्ण हैं

🥀 १३ जुलाई २०२४ शनिवार 🥀
//आषाढ़शुक्लपक्ष सप्तमी २०८१ //
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‼ऋषि चिंतन‼
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धर्म और विज्ञान दोनों महत्त्वपूर्ण हैं
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👉 “धर्म” और “विज्ञान” दोनों का लक्ष्य अच्छाई और सत्यान्यवेषण रहे तो “धर्म” और “विज्ञान” एक दूसरे का विरोध कर भी नहीं सकते । अभी हमारा विज्ञान केवल “पदार्थ” संबंधी जानकारी देता है, “लक्ष्य” नहीं बताता, इसलिए धर्म की दृष्टि में वह अहितकारक है । इसी प्रकार “अध्यात्म” अंध विश्वास को मान्यता देता है, जिसे विज्ञान कभी स्वीकार नहीं कर सकता । यह दोनों की भूलें हैं । दोनों में से किसी को भी अपनी सच्चाई से विमुख नहीं होना चाहिए।
👉 “विज्ञान” विशिष्ट तरीकों से ज्ञान प्राप्त कराता है और “धर्म” की अनुभूति भिन्न प्रकार की होती है। विज्ञान की दिशाएँ पदार्थ के ज्ञान की ओर बढ़ती हुई चली जाती हैं और एक दिन वहाँ पहुँचेंगी, जहाँ से ईश्वरीय शक्तियों ने स्वेच्छा या अन्य किसी कारण से पदार्थ में परिवर्तित होना प्रारंभ किया। इसी प्रकार आत्मा का प्रकाश तथा आत्मा की विशालता की अनुभूति भी एक दिन उसी सर्वव्यापी, सर्व-चैतन्य तत्त्व तक पहुँचा देती है। दोनों एक ही स्थान से उठते हैं और दोनों के गंतव्य भी एक हैं, इसलिए उनको यहाँ भी साथ-साथ ही रहना चाहिए। मनुष्य को इस जीवन में भौतिक सुखों
की अनुभूति भी रहनी चाहिए और आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील भी, इसलिए दोनों का समन्वय आवश्यक हो जाता है।
👉 अकेले विज्ञान को ही महत्त्व देना तो अंधों की कहानी की तरह होगा। एक बार अंधा अपने घर से निकल पड़ा और उस दरवाजे पर जाकर सहायता के लिए पुकारने लगा जिस घर में एक दूसरा अंधा रहता था। वह अंधा बाहर तो आया, पर कोई रास्ता बताने के पहले उसे यही पता लगाना कठिन हो गया कि यह अंधा किधर से आया है और वह किधर जाना चाहता है ? वह दिशा किस तरफ है ? बेचारे से असमर्थता ही प्रकट करते बनी। *यदि विज्ञान केवल पदार्थ में ही उलझा रहा तो मनुष्य शरीर में भावनाओं के, ईश्वरत्व के विकास का क्या बनेगा ? यदि सब कुछ पदार्थ को ही मान लिया गया तो प्रेम, मैत्री, सेवा, संतोष और शांति की भावनाओं का क्या होगा ? क्या इनकी उपेक्षा करके मनुष्य सुखी रह सकता है ?
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*धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं, पूरक पृष्ठ-७७*
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴 🌷 सीए राधेश्याम कासट , इंदौर 9425058354🌷