चतुर नहीं समझदार बनिए

🥀 २८ जुलाई २०२४ रविवार 🥀
//श्रावण कृष्णपक्ष अष्टमी २०८१ //
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‼ऋषि चिंतन ❗❗
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चतुर नहीं समझदार बनिए
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👉 यों कहने को तो सभी अपने को “समझदार” कहते हैं, पर उनकी यह मान्यता कसौटी पर कसने से खोटे सिक्के की तरह अवास्तविक सिद्ध होती है। “चतुर”, “चालाक”, “धूर्त”, “प्रपंची” भी अपने आपको “समझदार” होने का दावा करते हैं। अधिक पढ़े-लिखे और पद अधिकार उपलब्ध करने वाले भी ऐसे ही दावे करते हैं। जिन्होंने संपदा जमा कर ली है, वे भी अपने को दूसरों की तुलना में “अधिक “समझदार” होने का “अभिमान” संजोए हुए होते हैं। “सफलता” पाने वाले विपक्षी को गिरा देने वाले भी “समझदारी” की डींग हाँकते देखे गए हैं। पर यह वस्तुत: उनका भ्रम मात्र है।
👉 *”समझदारी” की वास्तविकता उसकी “दूरदर्शिता” में सन्निहित है । “दूरदर्शिता” अर्थात् कृत्यों के परिणाम का सही प्रकार अनुमान लगा सकना। लोगों को तात्कालिक लाभ ही सब कुछ दीखता है, भले ही उसका परिणाम आगे चलकर कितना ही कष्टकारक पतनोन्मुख एवं अपयश से भरा-पूरा वर्णित हो। *जाल में फँसने वाली “चिड़िया”, मछुआरों के छद्‌म में घुस पड़ने वाली “मछलियाँ” इसका उदाहरण हैं -वे “आटा” देखती हैं, “काँटा” नहीं। “असंयमी” इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।* लोलुपता उनसे कुछ भी करा लेती है। वासना-तृष्णा में आक्रांत व्यक्ति क्षणिक चसक पर, चासनी में डूब मरने वाली मक्खी की तरह आचरण करते हैं। लिप्सा की ललक जब तक पूरी नहीं हो पाती उससे पहिले ही दुष्परिणाम के संकट ग़हराने लगते हैं। “चटोरे” अभ्यास से अधिक मात्रा में खा मरते हैं और पेट को, समस्त शरीर को अनेकानेक बीमारियों का घर बना लेते हैं। कामुक और नशेबाज भी अपने पैरों कुल्हाड़ी मारते हैं। सूखी हड्डी चबाने वाला कुत्ता अपने जबड़ों से निकलने वाले खून को सूखी हड्डी का स्वाद मानता और जबड़ों को लहू-लुहान करता रहता है। बचपन में आवारागर्दी करने वाले लड़के आगे चलकर पग-पग पर ठोकरें खाते हैं और हेय स्तर का जीवन जीते हैं। इसके विपरीत जिन्हें दूर की सूझती है, वे “किसान” की, “माली” की, “विद्यार्थी” की तरह आरंभ में “कठोर” श्रम खुशी-खुशी करते हैं और समय आने पर “संपन्नता”, “सफलता” और “प्रतिष्ठा” का अयाचित प्रतिदान प्राप्त करते हैं। “कुमार्ग छोड़ना” और “सन्मार्ग अपनाना” और कुछ नहीं, मात्र “दूरदर्शिता” अपनाने की सहज प्रतिक्रिया है। “सदाशयता” का राजमार्ग भी इसे समझा जा सकता है। इस प्रयोजन की पूर्ति के लिए गृहपति को भी लगना चाहिए। साथ ही परिवार के अन्य जनों को भी प्रेरित, प्रोत्साहित करते रहना चाहिए।
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परिवार निर्माण की विधि व्यवस्था पृष्ठ-२५
🪴पं. श्रीराम शर्मा आचार्य 🪴 🌷 सीए राधेश्याम कासट ,इंदौर,9425058354🌷*