गयाजी में ही क्यों किया जाता हैं पिंडदान | गयाजी पिंडदान

भारत में पिंडदान के लिए 55 जगहों को बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया है। इनमें गयाजी का नाम सबसे पहले आता है। पिंडदान के लिए पूरे भारत में गया जी से अच्‍छी जगह नहीं है। लोग अपने पितरों की आत्‍मा की शांति और तर्पण के लिए बिहार के गया को ही चुनते हैं। पर क्‍या आप जानते हैं ऐसा क्‍यों है? चलिए तो जानते हैं गयाजी में ही क्‍यों किया जाता है पिंडदान? वीडियो शुरू करने से पहले आपसे एक निवेदन है कि हमारे चैनल “Gyan hi anmol hai”  को सब्सक्राइब कर लीजिए वीडियो पसंद आए तो वीडियो को लाइक और शेयर करें और कमेंट में यह जरूर बताएं की वीडियो कैसा लगा चलिए तो वीडियो शुरू करते हैं

 श्राद्ध कर्म या तर्पण करने के लिए भारत में कई स्थान है, लेकिन पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन शहर गयाजी की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। पिंडदान के लिए गया को ही सर्वोपरी मानने के पीछे कई कारण हैं. पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है.इसलिए ज्यादातर लोग गयाजी में ही पितरों का पिंडदान करते हैं. 

पितृ की श्रेणी में माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानी सहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरू और आचार्य भी पितृ की श्रेणी में आते हैं। कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन इसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है। इसके पीछे भी एक दिलचस्‍प कहानी है, जिसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए।

गया धाम की कहानी

गया धाम की कहानी गयासुर नाम के राक्षस से जुड़ी हुई है। जिसने विष्‍णु भगवान की तपस्‍या करके उन्‍हें प्रसन्‍न किया। तपस्‍या पूरी होने पर उसने भगवान से वरदान मांगा कि “मेरा शरीर देवताओं से भी ज्‍यादा पवित्र हो जाए। जो भी मेरे शरीर के दर्शन करे, या स्‍पर्श करे वह पाप मुक्‍त हो जाए”। भगवान विष्‍णु ने गयासुर को ये वरदान दे दिया। इसके बाद हालात बदल गए। लोग जमकर पाप करने लगे ओर बदले में गयासुर के दर्शन कर लेते। ऐसे में यहां पाप बढ़ता गया।

जब देवता लोग इससे परेशान हुए, तब वह विष्‍णुजी के पास पहुंचे। भगवान विष्‍णु गयासुर के पास आए और कहा कि “मुझे धरती पर यज्ञ करने के लिए सबसे पवित्र स्‍थान चाहिए। गयासुर ने कहा कि प्रभु मुझसे पवित्र तो और कुछ नहीं है। मैं धरती पर लेट जाता हूं, आप यज्ञ कर लीजिए”। जब गयासुर लेटा, तो उसका शरीर 5 कोस तक फैल गया।

विष्‍णुजी ने यज्ञ शुरू किया और यज्ञ के प्रभाव से गयासुर का शरीर कांपने लगा। तब भगवान विष्‍णु ने वहां एक शिला रखी। जिसे प्रेतशिला वेदी नाम दिया गया। गयासुर के त्‍याग से प्रभावित होकर यज्ञ समाप्त होने के बाद विष्णु जी ने गयासुर को मोक्ष प्रदान करने का वचन दिया और उसे यह वरदान भी प्रदान दिया कि उसकी देह जहां तक फैलेगी, वह स्थान पूर्ण रूप से पवित्र हो जाएगा, और जो भी व्यक्ति उस स्थान पर अपने पितरों का पिंडदान करेगा, उसके पूर्वज जन्म-मरण के बंधन से सदैव के लिए मुक्त हो जाएंगे। कहा जाता है कि तभी से इस स्थान का नाम गया पड़ गया है।

भगवान राम ने भी यहां किया था पिंडदान (Significance OF Pind Daan)

श्री हरि विष्णु ने यह वरदान दिया था की कि जो कोई भी अपने जीवनकाल के दौरान सच्ची श्रद्धा के साथ गया में पिंडदान करेगा, वह अपने मृत पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करेगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, त्रेता युग में भगवान राम ने फल्गु नदी के तट पर अपने पिता के लिए पिंडदान (Pitru Paksha 2024 Pind Daan Significance) किया था। तब से, गया वह पवित्र स्थान बन गया जहां लोग अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं।

भगवान राम और माता सीता ने किया था पिंंडदान

इसके अलावा गरुड़ पुराण के आधारकाण्ड के अनुसार भगवान राम और सीता ने पिता राजा दशरथ का पिंडदान गया में ही किया था. कथा के अनुसार जब माता सीता को फल्गु नदी के किनारे अकेला छोड़कर श्री राम और लक्ष्मण पिंडदान की सामग्री इकट्ठा करने के लिए चले गए थे. तभी राजा दशरथ वहां प्रकट हुए और उन्होंने पिंडदान की मांग की. ऐसे में माता सीता ने तुरंत नदी के किनारे मौजूद बालू से पिंड बनाया और फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानते हुए पिंडदान किया. माता सीता के बनाए बालू के पिंडदान से राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तभी से मान्‍यता है कि गया में पिंडदान करने से मृतक की आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

यह भी धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान भगवान श्रीहरि गया में पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है.

गयाजी में पिंडदान कहां कर सकते हैं

गया में पिंडदान के लिए कई पवित्र जगह हैं। आप फल्‍गुन नदी, विष्‍णुपद मंदिर, अक्षयवट वृक्ष , सीता कुंड, रामशिला वेदी, धर्मारण्‍य वेदी, प्रेतशिला वेदी, कागबली वेदी जैसी जगहों पर पितरों का तर्पण कर सकते हैं।

गया जी में घूमने वाली जगहें

देश दुनिया से पिंडदान करने आए लोग यहां के खूबसूरत पर्यटन स्‍थलों को घूमे बिना नहीं जाते। अगर आप गयाजी आ रहे हैं, तो यहां का महाबोधि मंदिर, रॉयल भूटान मठ, डुंगेश्‍वरी गुफा मंदिर, मंगला गौरी मंदिर, सुजाता स्‍तूप, दुख हरनी मंदिर के दर्शन जरूर करने चाहिए।

कैसे पहुंच सकते हैं बोधगया

अगर आप प्‍लेन से जाना चाहते हैं, तो नजदीकी एयरपोर्ट गया एयरपोर्ट है। हो सकता है आपको अपने शहर से यहां के लिए सीधी फ्लाइट न मिले, लेकिन वाराणसी और कोलकाता से बोधगया की सीधी फ्लाइट आपको मिल जाएगी। यहां से पिंडदान करने वाली जगहें लगभग 17-18 किमी दूर हैं। ऑटो या टैक्‍सी लेकर आप इन जगहाें पर पहुंच सकते हैं। वहीं ट्रेन से जाने के लिए आपको गया रेलवे जंक्‍शन पर उतरना होगा।