🥀१३ अक्टूबर २०२४ रविवार🥀
//आश्विनशुक्लपक्ष एकादशी २०८१ //
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‼ऋषि चिंतन‼
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एक समय पर एक ही काम कीजिए
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👉 “एक समय में एक काम” करने का सुनहरा सिद्धांत जिसने अपना लिया, समझिए कि जीवन संग्राम में विजय प्राप्त करने का एक बहुत ही मूल्यवान शस्त्र उसके हाथ आ गया। एक अँगरेजी की कहावत है कि “Work while you work, play while you play” “जब तुम काम करो, तब केवल काम करो और जब खेलो तब केवल खेलो।”
👉 भावार्थ यह है कि एक समय में एक काम करो, एक समय में कई काम करने से शक्तियाँ कई तरफ बँट जाती हैं और एक भी काम ठीक तरह नहीं हो पाता। काम कुछ हो रहा है और मन कहीं पड़ा है, यह स्थिति मनुष्य को लुंज-पुंज कर देती है। इसके कामों को फूहड़पन, अपूर्णता एवं सदोषता से मार देती है। चित्त की “अस्थिरता” एवं “चंचलता” एक ऐसा ऐब है, जो कितने ही सद्गुणों को निरर्थक बना देता है। आँधी या तूफान के वेग में जैसे कागज-पत्र पत्तों की तरह उड़ जाते हैं, वैसे ही मन में अस्थिरता की लहरें उठते रहने से चिरसंचित योग्यता अस्त-व्यस्त हो जाती है। कुशल-से- कुशल कारीगर जब अस्थिर चित्त से काम करते हैं, तो उनकी बनाई हुई चीजें गिरे दर्जे की तैयार होती हैं। इस प्रकार कोई साधारण दर्जे का कारीगर जब पूर्ण मनोयोग के साथ एकाग्र होकर जुटता है, तो साधारण साधनों की सहायता से भी ऊँचे दर्जे की प्रशंसनीय वस्तुएँ बना सकने में सफल होता है।
👉 “मन” और “शरीर” इन दो का संयोग हो जाने से १+१=११ की उक्ति चरितार्थ होती है। एक शरीर + एक शरीर = दो शरीर होते हैं। परंतु एक मन और एक शरीर का समन्वय कम-से-कम ग्यारह गुनी अधिक शक्ति का निर्माण करता है। पूरा काम पूरे मनुष्य से होता है। पूरा मनुष्य तब बनता है, जब वह मन और शरीर एकत्रित होकर काम कर रहे हों। *जब “शरीर” और “मन” दोनों निद्रा में निमग्न होते हैं, तब वह “मृतक” जैसी अवस्था होती है। जब शरीर सो रहा हो, मन जाग रहा हो तो वह “तंद्रा” है। जब शरीर और मन जागते तो हों, पर असंबंध हों तो वह अवस्था पूर्ण अवस्था है, किंतु जब “चित्त” और “देह” का पूर्ण एकीकरण एवं सहयोग होता हो, तो वह चैतन्य या जागरूक दशा कहलाती है। उस स्थिति में मनुष्य जो भी काम करता है, उसमें प्रायः सफलता ही मिलती है। *इसी तथ्य को ध्यान में रखकर “एक समय में एक काम” करने का सिद्धांत निर्धारित किया गया। यह स्वर्णिम सिद्धांत हर एक को सदा याद रखना चाहिए ।*
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