सुखी दांपत्य जीवन के सूत्र | Tips For A Happy Married Life

🥀 ०३ दिसंबर २०२४ मंगलवार 🥀
//मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष द्वितीया २०८१//
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‼ऋषि चिंतन‼
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❗सुखी दांपत्य जीवन के सूत्र❗
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👉 “दाम्पत्य जीवन” की सुख-समृद्धि एवं शांति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि व्यवहार में एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रक्खें। एक छोटा-सा सिद्धांत है कि “मनुष्य दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करे जैसा वह स्वयं के लिए चाहता है।” पति-पत्नी भी सदैव एक-दूसरे की भावनाओं-विश्वासों का ध्यान रखें, किन्तु देखा जाता है कि अधिकांश लोग अपनी भावना-विचारों में इतने खो जाते हैं कि दूसरे के विचारों का कुछ भी ध्यान नहीं रखा जाता, वे उन्हें निर्दयता के साथ कुचल भी देते हैं। इस तरह दोनों में एकता-सहयोग के स्थान पर असन्तोष का उदय हो जाता है। अपनी इच्छानुसार पत्नी को जबरदस्ती किसी काम के लिए मजबूर करना, उसकी इच्छा न होते हुए भी दबाव डालना, पति के प्रति पत्नी के मन में असन्तोष की आग पैदा करता है। इसी तरह कई स्त्रियाँ अपने पति के स्वभाव, रुचि, आदेशों का ध्यान न रखकर अपनी छोटी-छोटी बातों में ही उन्हें उलझाये रखना चाहती है। फलतः उन लोगों को विवाह एक बोझ-सा लगने लगता है। दाम्पत्य जीवन के प्रति घृणा-असंतोष होने लगता है और यही असंतोष उनके परस्पर के व्यवहार में प्रकट होकर दाम्पत्य जीवन को विषाक्त बना देता है। यदि किसी की मानसिक स्थिति ठीक न हो तो परस्पर लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं।
👉 पति-पत्नी का सदैव एक-दूसरे के भावों-विचारों एवं स्वतन्त्र अस्तित्व का ध्यान रखकर व्यवहार करना दाम्पत्य जीवन की सफलता के लिए आवश्यक है। इसी के अभाव में आजकल दाम्पत्य-जीवन एक अशांति का केन्द्र बन गया है। पति की इच्छा न होते हुए, साथ ही आर्थिक स्थिति भी उपयुक्त न होने पर स्त्रियों को बड़े-बड़े मूल्य की साड़ियाँ, सौन्दर्य प्रसाधन, सिनेमा आदि की माँग पतियों के लिए असन्तोष का कारण बन जाती हैं। इसी तरह पति का स्वेच्छाचार भी दाम्पत्य जीवन की अशांति के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। यही कारण है कि कोई घर ऐसा नहीं दीखता, जहाँ स्त्री-पुरुषों में आपस में नाराजगी असंतोष दिखाई न देता हो।
👉 पति-पत्नी का एक समान संबंध है, जिसमें न कोई छोटा न कोई बड़ा है। जीवन यात्रा के पथ पर पति-पत्नी परस्पर अभिन्न हृदय साथियों की तरह होते हैं। दोनों का अपने-अपने स्थान पर समान महत्त्व है। पुरुष जीवन क्षेत्र में पुरुषार्थ और श्रम के सहारे प्रगति का हल चलाता है तो नारी उसमे नवजीवन, नवचेतना, नव-सृजन के बीज वपन करती है। पुरुष जीवन रथ का सारथी है तो नारी रथ की धुरी। पुरुष जीवन रथ में जूझता है तो नारी उसकी रसद व्यवस्था और साधन सुविधाओं की सुरक्षा करती है । किंतु अज्ञान और अभिमान वश पुरुष नारी के इस सम्मान का पालन नहीं करता । दाम्पत्य जीवन में विष वृद्धि का एक कारण परस्पर असमानता और आदर भावनाओं का अभाव भी है ।
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