🥀१० नवंबर २०२३ शुक्रवार🥀
!!कार्तिक कृष्णपक्ष द्वादशी २०८० !!
👉आज ………………………
🪔💰🪪धनतेरस🪪💰🪔 है ।
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‼ऋषि चिंतन‼
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समय का महत्त्व समझिए
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👉 हर मनुष्य को “समय” के छोटे – से – छोटे क्षण का मूल्य एवं महत्त्व समझना चाहिए। जीवन का समय सीमित है और काम बहुत है। “समय” की चूक पश्चात्ताप की हूक बन जाती है। जीवन में कुछ करने की इच्छा रखने वालों को चाहिए कि वे अपने किसी भी काम को भूलकर भी कल पर न टालें जो आज किया जाना चाहिए, उसे आज ही करें। आज के काम के लिए आज का ही दिन निश्चित है और कल के काम के लिए कल का दिन निर्धारित है। आज का काम कल पर टाल देने से कल काम का भार दो गुना हो जाएगा जो निश्चय ही कल के समय में पूरा नहीं हो सकता। इस प्रकार आज का कल पर और कल का परसों पर ठेला हुआ काम इतना बढ़ जाएगा कि वह फिर किसी भी प्रकार पूरा नहीं किया जा सकता। जिस स्थगनशील स्वभाव तथा दीर्घसूत्री मनोवृत्ति ने आज का काम आज नहीं करने दिया, वह कल करने देगी ऐसा नहीं माना जा सकता। स्थगन-स्थगन को और क्रिया- क्रिया को प्रोत्साहित करती है। यह प्रकृति का एक निश्चित नियम है। कल के काम का दबाव काम को बेगार बना देता है, जो रो-झोंककर ही पूरा होता है। ऐसा होने से अभ्यास बिगड़ता है और उसका विकृत प्रभाव नए काम पर भी पड़ता है। इस प्रकार स्थगनशीलता कार्य में मनुष्य की रुचि तथा दक्षता को नष्ट कर देती है। इन दोनों विशेषताओं से रहित कर्तव्य- परिश्रम का भरपूर मूल्य पाकर भी अपेक्षित पुरस्कार एवं पारितोषिक नहीं दिला पाते।
👉 जीवन में सफलता के लिए जहाँ परिश्रम एवं पुरुषार्थ की अनिवार्य आवश्यकता है, वहाँ “समय” का सामंजस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। जिस समय को बरबाद कर दिया जाता है, उस समय में किया जाने के लिए निर्धारित श्रम भी नष्ट हो जाता है। श्रम तभी संपत्ति बनता है, जब वह समय में संयोजित कर दिया जाता है और समय तब ही संपदा के रूप में संपन्नता एवं सफलता ला सकता है, जब उसका श्रम के साथ सदुपयोग किया जाता है। समय का सदुपयोग करने वाले स्वभावतः परिश्रमी बन जाते हैं, जबकि असामयिक परिश्रमी आलसी की कोटि का ही व्यक्ति होता है। “समय” का सदुपयोग ही वास्तविक “श्रम” है।
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