🥀 २३ नवंबर २०२३ गुरुवार 🥀
!!कार्तिक शुक्लपक्षएकादशी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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सही बात कहने की कला
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👉 षडरिपु आध्यात्मिक संपत्तियों को दबाते चले आते है, असुरत्व बढ़ रहा है और सात्विकता न्यून होती जा रही है। आत्मा क्लेश पा रही है और शैतानियत का शासन प्रबल होता जाता है, क्या आप इस आध्यात्मिक अन्याय को सहन ही करते रहेंगे ? यदि करते रहेंगे, तो निस्संदेह पतन के गहरे गर्त में जा गिरेंगे। ईश्वर ने सद्गुणों की, सात्त्विक वृत्तियों की, सद्भावनाओं की, अमानत आपको दी है और आगाह किया है कि यह पूँजी सुरक्षित रूप से अपने पास रहनी चाहिए यदि उस अमानत की रक्षा न की जा सकी और चोरों ने, पापियों ने उस पर कब्जा कर लिया तो ईश्वर के सम्मुख जवाबदेह होना पड़ेगा, अपराधी बनना पड़ेगा।
👉 ठीक इसी तरह बाह्य जगत् में मानवीय अधिकारों की अमानत ईश्वर ने आपके सुपुर्द की है। इसको अनीतिपूर्वक किसी को मत छीनने दीजिए। “गौ” का दान “कसाई” को नहीं, वरन् “ब्राह्मण” को होना चाहिए। अपने जन्म सिद्ध अधिकारों को यदि बलात् छिनने देते हैं, तो यह “गौ” का “कसाई” को दान करना हुआ। यदि स्वेच्छापूर्वक सत्कार्यों में अपने अधिकारों का त्याग करते हैं, तो वह “अपरिग्रह” है, “त्याग” है, “तप” है। आत्मा, विश्वात्मा का एक अंश है। एक अंश में जो नीति या अनीति की वृद्धि होती है, वह संपूर्ण विश्वात्मा में पाप-पुण्य को बढ़ाती है, यदि आप संसार में पुण्य की, सदाशयता की, समानता की वृद्धि चाहते हैं, तो इसका आरंभ अपने ऊपर से ही कीजिए। अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जी तोड़ कोशिश करिए, इसके मार्ग में जो झूठा संकोच, बाधा उपस्थित करता है, उसे साहसपूर्वक हटा दीजिए।
👉 दबंग रीति से, निर्भयतापूर्वक खुले मस्तिष्क से बोलने का अभ्यास करिए। सच्ची और खरी बात कहने की आदत डालिए। जहाँ बोलने की जरूरत है, वहाँ अनावश्यक चुप्पी मत साधिए, ईश्वर ने वाणी का पुनीत दान मनुष्य को इसलिए दिया है कि अपने मनोभावों को भली प्रकार प्रकट करें, भूले हुओं को समझावें, भ्रम का निवारण करें और अधिकारों की रक्षा करें। आप झेंपा मत कीजिए, अपने को हीन समझने या मुँह खोलते हुए डरने की कोई बात नहीं है। धीरे-धीरे गंभीरतापूर्वक, मुसकराते हुए, स्पष्ट स्वर में, सद्भावना के साथ बातें किया कीजिए और खूब किया कीजिए, इससे आपकी योग्यता बढ़ेगी, दूसरों को प्रभावित करने में सफलता मिलेगी, मन हलका रहेगा और सफलता का मार्ग प्रशस्त होता जाएगा।
👉 ज्यादा बकबक करने की कोशिश मत कीजिए। अनावश्यक, अप्रासंगिक, अरुचिकर बातें करना, अपनी के आगे किसी की सुनना ही नहीं, हर घड़ी चबर-चबर जीभ चलाते रहना, बेमौके बेसुरा राग अलापना, अपनी योग्यता से बाहर की बातें करना, शेखी बघारना, वाणी के दुर्गुण हैं। ऐसे लोगों को मूर्ख, मुंहफट्ट और असभ्य समझा जाता है, ऐसा न हो कि अधिक वाचालता के कारण आप इसी श्रेणी में पहुँच जाएँ। तीक्ष्ण दृष्टि से परीक्षण करते रहा कीजिए कि आपकी बात को अधिक दिलचस्पी के साथ सुना जाता है या नहीं, सुनने में लोग ऊबते तो नहीं, उपेक्षा तो नहीं करते। यदि ऐसा होता हो तो वार्तालाप की त्रुटियों को ढूँढिये और उन्हें सुधारने का उद्योग कीजिए अन्यथा बक्की झक्की समझकर लोग आपसे दूर भागने लगेंगे।
👉 अपने लिए या दूसरों के लिए जिसमें कुछ हित साधन होता हो, ऐसी बातें करिए। किसी उद्देश्य को लेकर प्रयोजनयुक्त भाषण कीजिए अन्यथा चुप रहिये। कड़वी, हानिकारक, दुष्ट भावों को भड़काने वाली, भ्रमपूर्ण बातें मत कहिये। “मधुर,” “नम्र”, “विनययुक्त”, “उचित” और “सद्भावना” युक्त बातें करिए, जिससे दूसरों पर अच्छा प्रभाव पड़े , उन्हें प्रोत्साहन मिले, ज्ञान वृद्धि हो, शांति मिले तथा सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिले । ऐसा वार्तालाप एक प्रकार का तप है, “मौन” का अर्थ चुप रहना नहीं , वरन उत्तम बातें करना है । आप वाणी यज्ञ में प्रवृत्त हो जाइए, मधुर और हितकर भाषण करने की ओर अग्रसर होते रहिए।
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