Married Life Two Bodies One Soul | दांपत्य जीवन दो शरीर एक प्राण

🥀 २६ नवंबर २०२३ रविवार🥀
!!कार्तिक शुक्लपक्षचतुर्दशी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖दांपत्य जीवन➖ ❗दो शरीर एक प्राण❗
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👉 “दांपत्य” जीवन की सफलता के लिए इन दिनों शारीरिक स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, शिक्षा और सौंदर्य को आधार मानने की रीति है। निस्संदेह, सांसारिक जीवन को चलाने के लिए ये सभी आवश्यक हैं, “पर भौतिक उपकरणों से भी पहले गहन “आत्मीयता” और “सघन संवेदना” की उपस्थिति दांपत्य जीवन की आरंभिक शर्त है। यदि भावनाओं से पति-पत्नी एक-दूसरे से अर्धांग रूप से जुड़े रहते हैं, उनमें प्रेम एवं आत्मीयता भरी रहती है तो भौतिक साधन सर्वोपरि नहीं प्रतीत होंगे, बाह्य आकर्षण उन्हें उतने आवश्यक नहीं लगेंगे।
👉 “प्रेम” और “आकर्षण” दो भिन्न तत्व हैं। शारीरिक गठन व स्वास्थ्य और सौंदर्य के अनुपात से घटती-बढ़ती रहने वाली राग वृत्ति को “आकर्षण” कहते हैं, जबकि “प्रेम” इससे भिन्न एक आध्यात्मिक तत्व जो दांपत्य जीवन में मधुरता का, कठिन परिस्थितियों में भी “सघन आत्मीयता” और “कर्त्तव्य निष्ठा” का, “आनंद-प्रमोद” तथा “आह्लाद का संचार करता रहता है। अंतःकरण का संतोष ही उसे पालता है। 👉 यह भूलना नहीं चाहिए कि प्रेम और आत्मीय सघनता का विकास सहयोग, समर्पण और त्याग, के धरातल पर ही संभव है । “संतुलन” और “सामंजस्य” एकांगी नहीं होता। एकाकी प्रयत्न से सामंजस्य का प्रयास प्रायः निरर्थक ही सिद्ध होता है। तुला के दो पलड़ों को संतुलित रखने के लिए समतुल्य भार की वस्तुएँ ही दोनों ओर रखनी होती हैं। नाव के दोनों सिरों पर बैठे लोगों में परस्पर संतुलन न हो तो नाव डगमगाने लगती है और डूबने का खतरा आ
खड़ा होता है। *”दांपत्य” जीवन में बराबरी का सहयोग और सहकार
आवश्यक होता है। *इस सघन सद्भाव का विकास तभी होता है, जब दांपत्य जीवन का लक्ष्य उदात्त हो। यह दोनों के समक्ष स्पष्ट रहे कि हमारे मिलन का अभिप्राय काम सेवन की सुविधा, रोटी बनाने, घर चलाने की व्यवस्था या एक कमाऊ साथी की प्राप्ति नहीं, अपितु दो आत्माओं का एकीकरण है।* पति-पत्नी के बीच विद्यमान आकर्षण का
चरम प्रयोजन है- “दो व्यक्तियों के मिलन की ऐसी अनूठी प्रक्रिया का संपन्न होना, जो समाज में एक नई ही वस्तु को, एक नई ही प्रक्रिया को जन्म दे। नर-नारी के बीच ऐसे अद्भुत घुलनशील तत्व हैं कि यदि वे दोनों गहन स्तर तक परस्पर मिल सकें तो एक नया संयुक्त व्यक्तित्व उत्पन्न होता है और उसके प्रभाव से दोनों अपना पुराना स्तर खोलकर नए स्तर के बन जाते हैं। कुमारी अवस्था में लड़की जिस स्तर की थी, उसमें विवाह के बाद कायाकल्प जैसा परिवर्तन होता है और किशोर लड़के विवाह से पूर्व जिस प्रकृति के थे, विवाह के बाद इतने बदले पाए जाते हैं कि केवल आकृति ही पुरानी रह जाती है, प्रकृति में जमीन आसमान जैसा अंतर उपस्थित होता है। इस पर घुलन के लिए मात्र शारीरिक समीप्य अपर्याप्त है। वह तो एक बहुत ही छोटा अंश भर है। व्यक्तित्वों का घुलना उतने भर से नहीं होता, उसके लिए भावनात्मक सघनता आवश्यक है। यही सघनता वह स्थिति लाती है कि एक प्राण दो शरीर का आभास होने लगे। उस स्थिति में दोनों का ही एक-दूसरे पर पूर्ण अधिकार रहता है।
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