🥀 ०१ दिसंबर २०२३ शुक्रवार🥀
!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष चतुर्थी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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अध्यात्म हमारा मूल स्वभाव है
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👉 आकाश के ग्रह नक्षत्र चक्कर लगाते हैं । पता है कौन ग्रह पृथ्वी से कितनी दूर है ? किस ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में कितनी यात्रा करनी पड़ती है ? उनकी आंतरिक रचना के बारे में भी जानकारियां मिल रही हैं । पर ग्रह नक्षत्र चक्कर क्यों काट रहे हैं? यह विज्ञान नहीं बता सकता, उसके लिए हमें आध्यात्मिक चेतना की ही शरण लेनी पड़ती है । “अध्यात्म” में ही वह शक्ति है, जो मनुष्य के आंतरिक रहस्यों का उद्घाटन कर सकती है। विज्ञान उस सीमा तक पहुँचने में समर्थ नहीं है।
👉 “अध्यात्म” एक स्वयं सिद्ध शक्ति है, उसका वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण (एनालिसिस) नहीं किया जा सकता। मस्तिष्क के गुणों के बारे में विज्ञान चुप है। हमें नई-नई बातों की उत्सुकता क्यों रहती है ? हम आजीवन कर्तव्यों से क्यों बँधे रहते हैं ? निर्दय कसाई भी अपने बच्चों से प्रेम और ममत्व रखते हैं, हिंसक डकैत भी स्वयं कष्ट सहते पर अपनी धर्मपत्नी, अपने बच्चों के भरण-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबंध करते हैं। चोर और उठाईगीरों को भी अपने साथियों और मित्रों के साथ सहयोग करना पड़ता है। सहानुभूति, सेवा और सच्चाई यह आत्मा के स्वयं सिद्ध गुण हैं। मानवीय जीवन में उनकी विद्यमानता के बारे में कोई संदेह नहीं है। यह अलग बात है कि किसी में इन गुणों की मात्रा कम है। किसी में कुछ अधिक होती है।
👉 सौंदर्य की अदम्य पिपासा, कलात्मक और नैतिक चेतना को भौतिक नियमों के द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता। इन्हें जिस शक्ति के द्वारा व्यक्त और अनुभव किया जा सकता है, वह “अध्यात्म” है। हमारा ९९ प्रतिशत जीवन इन्हीं से घिरा हुआ रहता है। मात्र १ प्रतिशत आवश्यकतायें भौतिक हैं, किंतु खेद है कि १ प्रतिशत के लिए जीवन के शत-प्रतिशत अंश को न्योछावर कर दिया जाता है। ९९ प्रतिशत भाग अंततोगत्वा उपेक्षित ही बना रहता है, इससे बढ़कर मनुष्य का और क्या दुर्भाग्य हो सकता है ? अशांति, असंतोष उसी के परिणाम हैं।
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