Mitigation Of Mental Disorders And Financial Purity is Possible Only Through Spirituality | मानसिक विकारों का शमन तथा आर्थिक शुचिता आध्यात्मिकता से ही संभव है

🥀 ०५ दिसंबर २०२३ मंगलवार🥀
!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष अष्टमी२०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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〰️ मानसिक विकारों का शमन 〰️
➖तथा➖
➖आर्थिक शुचिता➖
👉आध्यात्मिकता से ही संभव है👈
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👉 मनुष्य का मन शरीर से अधिक शक्तिशाली साधन है। चिंता, भय, निराशा, क्षोभ, लोभ और आवेगों का भूकंप उसे अस्त-व्यस्त बनाये रहता है। स्थिरता, प्रसन्नता और सदाशयता का कोई लक्षण दृष्टिगोचर नहीं होता। ईर्ष्या, द्वेष और रोष-क्रोध की नष्टकारक चिताएँ जलती और जलाती ही रहती हैं। ऐसे कितने लोग मिलेंगे जिनकी मनोभूमि इन प्रकोपों से सुरक्षित हो और जिन आत्म-गौरव, धर्मपरायणता और कर्तव्यपालन की सद्‌भावन फलती-फूलती हो ? अन्यथा लोग मानसिक विकारों, आवेगों के असदविचारों से अर्धविक्षिप्त से बनें घूम रहे हैं।
👉 क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए ? किस प्रकार करना चाहिए और कौन-सी गतिविधि नहीं अपनानी चाहिए इस बात का उचित न्याय सामने रखकर चलने वाले आध्यात्मिक लोग बहुधा मानसिक समस्याओं से सुरक्षित बने रहते हैं। अपनी उन्नति करते चलें और दूसरों की उन्नति में सहायक होते चलें । अपनी स्थिति और दूसरों की स्थिति के बीच अंतर से न तो ईष्यालु बने और न हीनभावी। इसी प्रकार असफलता में निराशा को और सफलता में अभिमान को पास न आने दें। मन:शांति का महत्व समझते हुए प्रतिकूल परिस्थितियों और विरोधों में भी उद्विग्न और क्रुद्ध न हों । सहिष्णुता, सहनशीलता, क्षमा, दया और प्रेम का प्रश्रय लेते चलें । मन:क्षेत्र में इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण का समावेश कर लेने पर मानसिक समस्याओं के उत्पन्न होने का कोई प्रश्न ही नहीं रह जाता ।
👉 आर्थिक क्षेत्र में तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण का महत्त्व और भी अधिक है। इस क्षेत्र में ही लोग अधिक अनात्मिक और अनियमित हो जाया करते हैं। आर्थिक क्षेत्र के आध्यात्मिक सिद्धांत हैं-“मितव्ययिता,” “संतोष,” “निरालस्य” और “ईमानदारी”। मितव्ययी व्यक्ति को आर्थिक संकट कभी नहीं सताता। ऐसा व्यक्ति जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं के सिवाय कृत्रिमता को कभी भी प्रश्रय नहीं देता। विलास, भोग और अनावश्यक सुख-सुविधा के साधनों से उसका कोई लगाव नहीं होता और न वह प्रदर्शन की ओछी वृत्ति को ही अपनाया करता है। संतोषी आर्थिक क्षेत्र में ईर्ष्या-द्वेष, प्रतिस्पर्धा, लोभ और स्वार्थपरता के पापों से बचा रहता है। आर्थिक क्षेत्र में आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति निरालस्य होकर भरपूर परिश्रम करता है। ईमानदारी के पारिश्रमिक द्वारा मितव्ययिता और संतोषपूर्वक जीवनयापन करता हुआ सदा प्रसन्न रहता है। न तो उसे स्वार्थ की अधिकता सताती है, न ईर्ष्या जलाती है और न ऐसे व्यक्ति के विरोध में कोई अन्य लोग ही खड़े होते हैं ।➖➖🪴➖➖