God is Not Partial, Grants and Blessings are Given as Per Eligibility | ईश्वर पक्षपाती नहीं है पात्रतानुसार अनुदान वरदान मिलते हैं

🥀 ०७ दिसंबर २०२३ गुरुवार🥀
!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष दशमी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖ईश्वर पक्षपाती नहीं है➖
पात्रतानुसार अनुदान वरदान मिलते हैं
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👉 ईश्वर का प्यार और अनुदान उसकी हर सन्तान के लिए प्रचुर परिमाण में विद्यमान हैं। पर उसकी उपलब्धि पात्रता के अनुरूप ही होती है । किसी के लिए चपरासी बनना भी सौभाग्य है और किसी को जिस श्रेणी का अफसर बनाया गया है उसे उससे भी बड़ी पदोन्नति जल्दी ही मिल जाती है । इसमें भेदभाव या पक्षपात जैसा कोई अन्याय नहीं । ऊँची श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाले ही पुरस्कृत होते और छात्रवृत्ति पाते हैं ।
👉 दैवी अनुग्रह और अनुदान प्राप्त करने के लिए यह प्रमाणित करना पड़ता है कि प्रार्थी ने उसके लिए उपयुक्त प्रामाणिकता अर्जित कर ली है । इतना कर चुकने के उपरान्त योग्यता का मूल्य प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं आती । किन्तु यदि इससे बचकर नियुक्ति कर्ता की मनुहार कर छुटपुट उपहारों के सहारे फुसलाने का प्रयास करे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए स्वामि-भक्ति की दुहाई दे तो उसका सफल होना कहाँ तक संभव है ? बैंक में ढेरों रुपया होने पर भी किसी का उतना बड़ा ही चेक स्वीकारा जाता है जितनी उसकी अमानत जमा है । कर्ज भी वापस किए जाने की गारन्टी पर ही मिलता है । इन मर्यादाओं की उपेक्षा करके कोई मैनेजर का स्तवन, अभिवादन या पुष्प अक्षत भेंट करके मनचाही राशि प्राप्त नहीं कर सकता । इस विश्व व्यवस्था का कण-कण नियम मर्यादाओं में बँधा है, ईश्वर भी । उससे कोई नाक रगड़कर, गिड़गिड़ा कर, कुछ ऐसा प्राप्त नहीं कर सकता जो शानदार हो और आकांक्षाओं के अनुरूप हो । ईश्वर से बहुत कुछ पाया जा सकता है किन्तु नियत मर्यादाओं के अनुरूप ही ।
👉 जिन आध्यात्मिक अनुदानों की पात्रता के अनुरूप हमें उच्च स्तरीय ऋद्धि-सिद्धियाँ मिलती हैं, उन्हें व्यक्तिगत जीवन की पवित्रता और प्रखरता कहा जाना चाहिए । दूसरे शब्दों में उन्हें चिन्तन और चरित्र की प्रामाणिकता भी कहा जा सकता है । सर्व प्रथम साधक को इसी के लिए प्रयत्न करना होता है । अगली उपलब्धियाँ प्राप्त करने वाला पक्ष अति सरल है । रँगाई से पहले धुलाई आवश्यक है । बोने से पहले खेत जोतना पड़ता है । ईश्वर की अनुकम्पा पाने के लिए भी यही करना पड़ता है ।
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