🥀 २७ दिसंबर २०२३ बुधवार🥀
🍁पौष कृष्णपक्ष प्रतिपदा २०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖”अध्यात्म विज्ञान”➖
जीवन जीने की सर्वोत्कृष्ट विद्या
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👉 अध्यात्म विज्ञान, आध्यात्मिक साधनाएँ इतनी सामर्थ्यवान, प्रभावशाली हैं कि उनके द्वारा भौतिक विज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ उपलब्ध की जा सकती हैं। हमारे देश में अनेक ऋषियों- महर्षियों, संत-महात्माओं, योगी-यतियों का जीवन इसका प्रमाण है। बिना साधनों के उन्होंने आज से हजारों वर्ष पूर्व अंतरिक्ष, पृथ्वी, सूर्य, चंद्रमा आदि के संबंध में अनेकों महत्त्वपूर्ण तथ्य खोज निकाले थे। अनेकों विद्याएँ, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान में उनकी गति असाधारण थी। बड़े-बड़े राजमुकुट उनके पैरों में झुकते थे। लेकिन अपनी अध्यात्म साधना के समक्ष वे सब कुछ महत्त्वहीन समझते थे और निरंतर अपने ध्येय में संलग्न रहते थे।
👉 आज उन्हीं अध्यात्मवेत्ताओं के देश में इस महान विज्ञान की जितनी दुर्गति हुई है, उस पर किसी विचारशील व्यक्ति का दु:खी होना स्वाभाविक ही है। “अध्यात्म विज्ञान” के प्रति आजकल हमारे मूल्यांकन की कसौटी, परिचयप्राप्ति के ढंग इतने बदल से गए हैं कि हम अध्यात्म विद्या से बहुत दूर भटक गए हैं। इसके वास्तविक मर्म को न जानने के कारण अध्यात्म के नाम पर बहुत से लोग जीवन के सहज पथ को छोड़कर अप्राकृतिक, असामाजिक, उत्तरदायित्वहीन जीवन बिताने लग जाते हैं। गलत, अस्वाभाविक जीवनक्रम के कारण कई बार शारीरिक अथवा मानसिक रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
👉 आज आध्यात्मिक जीवन बिताने का अर्थ जनसाधारण में लोक- जीवन को उपेक्षित मानने से होता है। अकसर लोगों में यह धारणा भी कम नहीं फैली है कि “यह संसार क्षणभंगुर” है, “माया है” “इसका त्याग करने पर ही मोक्ष-कल्याण की मंजिल प्राप्त हो सकती है।” इसी धारणा से प्रेरित होकर बहुत से लोग अपना कर्त्तव्य, अपनी जिम्मेदारियाँ छोड़ बैठते हैं। अपना घर-बार छोड़ बैठते हैं। लेकिन यदि घर-गृहस्थी को छोड़ना, अपने कर्त्तव्यों से मुँह मोड़ना ही आध्यात्मिक पथ पर बढ़ने का प्रथम चिह्न है तो आध्यात्मिक इतिहास से सारे ऋषियों को हमें हटाना पड़ेगा। क्योंकि प्रायः महर्षि गृहस्थ थे। जनसाधारण का स्वाभाविक सहज जीवन बिताते थे। गुरुकुल पाठशालाएँ चलाते थे। जनता के धर्मशिक्षण का दायित्व पूरी तरह निभाते थे।
👉 जो लोक जीवन को पुष्ट न कर सके, जो व्यक्ति का सर्वांगीण विकास न साध सके, जो जग पथ पर चलते हुए मनुष्य को शक्ति प्रेरणा न दे सके, जो मनुष्य को व्यावहारिक राजमार्ग न दिखा सके, वह अध्यात्म विज्ञान हो ही नहीं सकता ।