The Speed Of Actions Is Very Intense | कर्मों की गति बड़ी गहन है

🥀 ०५ जनवरी २०२४ शुक्रवार🥀
🍁पौष कृष्णपक्ष नवमी २०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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कर्मों की गति बड़ी गहन है
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👉 संसार में अनेक बार ऐसी घटनाएँ होती दिखलाई पड़ती है, जो ईश्वरीय न्याय के बिल्कुल विपरीत जान पड़ती हैं। एक सज्जन व्यक्ति दरिद्रता का जीवन बिता रहा है और दूसरा प्रसिद्ध कुकर्मी मौज कर रहा है । परिश्रम करने वाला सीधा-सादा किसान, टोकरी ढोने वाला मजदूर ठोकरें खाता फिरता है और दिन भर गद्दी पर लेटे-लेटे दूसरों की सम्पत्ति को अपहरण करने की तरकीब सोचने वाले तिकड़‌मी व्यक्ति स्वामी बने रौब दिखा रहे हैं । इस तरह की बातें वर्तमान समय में बहुत बढ़ गई हैं और इनके कारण लोगों के हृदय में यह भावना उत्पन्न हो जाती है कि ये आत्मा-परमात्मा, लोक-परलोक, पाप-पुण्य की बातें बिल्कुल निरर्थक हैं और मनुष्य को एक मात्र स्वार्थ साधन पर ही दृष्टि रखनी चाहिए । इसी प्रकार की भावना के कारण मनुष्य और भी अनेक प्रकार के भ्रमों में पड़कर अनुचित कार्य करने लग जाता है, अपने दोष को न समझकर उसकी जिम्मेदारी दूसरों के सिर मढ़ने लगता है ।
👉 इस हानिकर परिस्थिति से बचने के लिए हमको कर्म-रहस्य का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए कि किस प्रकार हमारे शुभाशुभ कार्यों का प्रभाव हमारी अन्तरात्मा अथवा अन्तर्मन पर पड़ता रहता है और वह कभी तो तुरन्त और कभी बहुत समय बाद फल रूप में प्रकट होता है। जब हम सुख-दु:ख देने वाले कर्मों की विवेचना करते हैं तो वे तीन प्रकार के सिद्ध होते हैं-संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण । सुख तो मनुष्य की स्वाभाविक स्थिति है । सुकर्म करना स्वभाव है इसलिए सुख प्राप्त होना भी स्वाभाविक ही है। कष्ट दुःख में होता है । दुःख से ही लोग डरते, घबराते हैं, उसी से छुटकारा पाना चाहते हैं। इसलिए दुःखों का ही विवेचन यहाँ होना उचित है। आरोग्यवर्द्धक शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र दो अलग-अलग शास्त्र हैं। इसी प्रकार सुख-दुःख के भी दो अलग-अलग शास्त्र हैं। सुख वृद्धि के लिए धर्माचरण करना चाहिए, जैसे कि स्वास्थ्य वृद्धि के लिए पौष्टिक पदार्थों का सेवन किया जाता है । दुःख निवृत्ति के लिए, रोग का निवारण करने के लिए उसका निदान और चिकित्सा जानने की आवश्यकता है। कर्म की गहन गति की जानकारी प्राप्त करने से दुःखों का मर्म समझ में आ जाता है । दु:खों के कारण को छोड़ देने से सहज ही दु:खों की निवृत्ति हो जाती है।
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