🥀 ०६ जनवरी २०२४ शनिवार🥀
🍁पौष कृष्णपक्ष दशमी २०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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➖दैहिक कष्टों का कारण➖
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👉 “दैहिक” – “शारीरिक” दुःख अथवा कष्ट वे होते हैं जो शरीर को होते हैं । जैसे रोग, चोट,आघात, विष आदि के प्रभाव से होने वाले कष्ट । दैहिक-शारीरिक कष्टों का कारण समझना चाहिए । जन्मजात अपूर्णता एवं पैतृक रोगों का कारण पूर्व जन्म में उन अंगों का दुरुपयोग करना है । मरने के बाद सूक्ष्म शरीर रह जाता है। नवीन शरीर की रचना इस सूक्ष्म शरीर द्वारा होती है। इस जन्म में जिस अंग का दुरुपयोग किया जा रहा है, वह अंग सूक्ष्म शरीर में बहुत दुर्बल हो जाता है। जैसे कोई व्यक्ति अति मैथुन करता हो तो सूक्ष्म शरीर का वह अंग निर्बल होने लगेगा, फलस्वरूप सम्भव है कि वह अगले जन्म में नपुंसक हो जाय । यह केवल कठोर दण्ड ही नहीं वरन् सुधार का एक उत्तम तरीका भी है । कुछ समय तक उस अंग को विश्राम मिलने से आगे के लिए वह सचेत और सूक्ष्म हो जायेगा। शरीर के अन्य अंगों के शारीरिक लाभ के लिए पापपूर्ण, अमर्यादित, अपव्यय करने पर आगे के जन्म में वे अंग जन्म से ही निर्बल या नष्ट प्रायः होते हैं। शरीर और मन के सम्मिलित पापों के शोधन के लिए जन्मजात रोग मिलते हैं या बालक अंग-भंग उत्पन्न होते हैं। अंग-‘भंग या निर्बल उत्पन्न होने से उस अंग को अधिक काम नहीं करना पड़ता इसलिए सूक्ष्म शरीर का वह अंग विश्राम पाकर अगले जन्म के लिए फिर तरोताजा हो जाता है साथ ही मानसिक दुःख मिलने से वह मन का पाप भार भी घुल जाता है।
👉 मानसिक पाप भी जिस शारीरिक पाप के साथ घुला-मिला होता है, वह यदि राजदण्ड समाज दण्ड या प्रायश्चित द्वारा इस जन्म में शोधित न हुआ हो तो उसका शोधन शीघ्र ही शारीरिक प्रकृक्ति द्वारा हो जाता है । जैसे नशा पिया, उन्माद आया । विष खाया, मृत्यु हुई । आहार-विहार में गड़बड़ी की, बीमार पड़े। इस तरह शरीर अपने साधारण दोषों की सफाई जल्दी-जल्दी कर लेता है और इस जन्म का भुगतान इसी जन्म में कर जाता है । परन्तु गम्भीर शारीरिक दुर्गुण, जिनमें मानसिक जुड़ाव भी होता है, अगले जन्म में फल प्राप्त करने के लिए सूक्ष्म शरीर के साथ जाते हैं ।
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