🥀 ०५ मार्च २०२४ मंगलवार🥀
🍁फाल्गुनकृष्णपक्षदशमी२०८०🍁
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‼ऋषि चिंतन‼
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सादगी प्रगति में बाधक नहीं है
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👉 कुछ विचारक हैं जो “सादगी” को अव्यावहारिक सिद्धांत बताकर उसे प्रगति में बाधक बताते हैं। उनका कहना है कि यदि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को सीमित कर ले और उपलब्ध साधनों में ही संतोष कर ले तो मानवी सभ्यता की प्रगति ही रुक जाएगी। क्योंकि तब मनुष्य सृजन करना ही बंद कर देगा, प्रगति के लिए, साधनों के विकास के लिए प्रयत्न ही नहीं करेगा। वस्तुतः यह सोचने वाले विचारक “सादगी” के अर्थ को ही नहीं समझ पाते। “सादगी” का अर्थ न तो यह है कि आवश्यकताएँ पूरी हो जाने के बाद निश्चेष्ट बैठे रहा जाय और न ही यह कि वह और अधिक प्रगति के लिए प्रयास ही न करे।
👉 “सादगी” का अर्थ वह मनोवृत्ति है जो अपनी सामर्थ्य और शक्ति के अनुसार जीवनयापन करने में सुख मानती है। इसमें तुलसीदास का यह आत्मकथ्य भावात्मक ढंग से प्रस्तुत है कि चाहते तो अमृत हैं पर छाछ (मठा) जुटाने में भी असमर्थ हैं, “चाहिए अमिय जग जुरई न छाछी।” अपनी आवश्यकताओं को इतना अधिक बढ़ा लेना कि वे उपलब्ध साधनों से पूरी न हो सकें “असंतोष” है और असंतुष्ट वृत्ति से प्रगति के प्रयास तो दूर यथास्थिति में ही सुखी और निर्द्वंद्व रह पाना ही असंभव हो जाता है। हमारे पास दस हजार रुपए की जमा पूँजी हो और एक छोटा सा मकान, वह भी पैतृक उत्तराधिकार में मिला है। और हम यह सोचें कि काश हम लखपति होते, हमारे पास मकान की अपेक्षा एक बढ़िया बंगला हो, पास में कार हो, नौकर-चाकर हमारी आज्ञाओं का पालन करने के लिए हर घड़ी हाथ बाँधे खड़े रहें और न केवल यह सोचें तथा आशा ही करें, वरन इन्हें अपने जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण रूप से आवश्यक भी समझें तो कहना नहीं होगा कि हम उपलब्ध साधनों का आनंद भी नहीं उठा पाएँगे।
👉 “संतोष” का इतना ही अर्थ है कि उपलब्ध साधनों को प्रभु का वरदान मानकर उसके प्रति कृतज्ञता रखते हुए सुख – शांतिपूर्ण मन:स्थिति बनाए रखना तथा प्रगति के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहना *सीसंतोषवृत्ति” है, “स्वभाव” है जो सादगी के रूप में बाहर व्यवहार तथा जीवन में फलित होती है । दोनों का संबंध बीज और वृक्ष का सा है, जिसमें शांति, स्थिरता, सुख और आनंद के फल लगते हैं। यह निश्चिंतता पूर्वक कहा जा सकता है कि “सादगी” से रहने वाला व्यक्ति ही समाज के विकास में योगदान दे सकता है।
👉 कुछ लोग ऐसा तर्क देते हैं कि इस तरह की सादगी अपनाने से तो मनुष्य पुन: शताब्दियों पीछे का जीवन जीने लगेगा । विज्ञान ने जो साधन उपलब्ध कराएं हैं, वे भी निरूपयोगी हो जाएंगे । क्योंकि सादगी अपनाने वाला व्यक्ति सोचेगा, “मोटर में बैठने से क्या फायदा पैदल भी तो चला जा सकता है, घड़ी बांधना क्या जरूरी, जब घड़ी नहीं बनी थी तब भी लोग प्रतिदिन काम करते थे और बिना साबुन के भी कपड़े धोए जा सकते हैं।”
👉 “सादगी” का यह अर्थ नहीं है । विचारपूर्ण दृष्टि अपनाने पर मानव सभ्यता के आदिम युग में लौट जाने का भी खतरा नहीं है। इसके लिए हमें आत्यंतिक दृष्टि से परे रहकर विचार करना चाहिए। इस युग में महात्मा गांधी को सादगी की प्रतिमूर्ति कहा जाता है पर वे भी अखबार पढ़ते थे, घड़ी रखते थे, रेल में सफर करते थे। “सादगी” वस्तुओं या साधनों के उपयोग से नहीं रोकती, वह तो केवल दृष्टिकोण भर बदलती है तथा साधनों को और अधिक उपयोगी बनाती है।
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