🥀 ०६ मार्च २०२४ बुधवार🥀
फाल्गुन कृष्णपक्ष एकादशी २०८०
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‼ऋषि चिंतन‼
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हम अध्यात्म को सही स्वरूप में समझें
〰️और〰️
➖उसे जीवन में धारण करें➖
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👉 शरीर को स्थिर और समर्थ बनाए रखने के लिए आहार-विहार के नियम पालने पड़ते हैं। लोक व्यवहार की भी कुछ मर्यादा और परंपराएँ हैं, जिनका निर्वाह करते हुए ही कोई शिष्ट-सज्जन कहा जा सकता है और सभ्य समाज में अपनी जगह बना सकता है। अर्थशास्त्र से लेकर विज्ञान तक की अनेक विधाएँ अपने सिद्धांतों के अनुरूप आचरण चाहती हैं। इन विधाओं की अवमानना करने पर प्रत्यक्ष जीवन में पग-पग पर हानि उठानी और भर्त्सना सहनी पड़ती है । अनुशासन और प्रयोग विधान से विनिर्मित राजमार्ग पर चलते हुए ही कोई सुखी रह सकता है और प्रगति पथ पर अग्रसर होने का लाभ उठा सकता है।
👉 “अध्यात्म” क्षेत्र का अपना स्वरूप और अपना अनुशासन है, जिसे पढ़-सुन लेने से काम नहीं चलता, वरन उसके निर्धारणों को हृदयंगम करना और दृढ़तापूर्वक प्रयोग में लाना पड़ता है। उस सारी व्यवस्था को समझ पाने पर ही यह संभव हो सकता है कि प्रतिफलों से लाभान्वित हुआ जा सके, केवल कथोपकथनों की तोता रटंत से तो कौतूहल मात्र बन पड़ता है। लाभ उठाने जैसी स्थिति तो बन ही नहीं पाती।
👉 “चेतन” पक्ष को सुनियोजित-सुसंस्कृत बनाने की विधा को “अध्यात्म” नाम से जाना जाता है। इसमें वह अनुशासन भी जुड़ा हुआ है, जिसको “संयम” या “आत्मानुशासन” नाम से जाना जाता है। यह न बनने पर जो शेष रह जाता है, उसे आडंबर या कलेवर ही कह सकते हैं। रामलीला आयोजन में बड़े आकार के रावण-कुंभकरण आदि खड़े किए जाते हैं। उनसे कौतूहल भर होता है। अधिक-से- अधिक उन दैत्यों के संबंध में कुछ जानकारी मिलती है, पर यह नहीं होता कि वे पुतले अपने कलेवर के अनुरूप कुछ क्रिया-कृत्य, पराक्रम, पुरुषार्थ करके दिखा सकें। यही बात “अध्यात्म” के संबंध में भी है। आमतौर से लोग उसके कलेवर भर का स्पर्श करने में रुचि लेते हैं। उसकी मर्यादाओं को जीवन में उतारने का प्रयल नहीं करते। फलतः जो कुछ बचा रहता है, उसे कलेवर की विडंबना भर कहा जा सकता है। तथ्य और तत्त्व का समावेश न होने पर यह स्थिति बन नहीं पड़ती, जिसमें विज्ञान के समतुल्य या उससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध कर सकने की स्थिति बन सके। एक ओर सजीव हाथी खड़ा हो और दूसरी ओर वैसा ही कागज का पुतला बनाकर खड़ा कर दिया जाए, तो यह आशा नहीं की जा सकती कि तुलना करने पर दोनों की सामर्थ्य समान सिद्ध हो सकेगी, दोनों को समान महत्त्व का मूल्य मिल सकेगा, दोनों से समान काम लिया जा सकेगा। नकली को अधिक वरिष्ठ या प्रमुख सिद्ध करने का तो अवसर ही कहाँ आता है।
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