अपनो के लिए || For Loved Ones


अपनो के लिए

एक बार राजा भोज ने एक सार्वजनिक भोज दिया। लोग तरह तरह की मिठाइयां और पकवान खाकर तृप्त हो गए। अपनी उदारता की चर्चा और प्रशंसा सुनकर राजा का सीना गर्व से फूल गया। शाम को एक लकड़हारा सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए उन्हें नगर के द्वार पर मिला। उन्होंने पूछा- ‘क्या तुम्हें पता नहीं था कि राजा भोज ने आज भोज दिया है। पता होता तो तुम्हें यह श्रम न करना पड़ता।’ लकड़हारा बोला,’नहीं; मुझे पता था। पर जो परिश्रम की कमाई खा सकता है, उसे राजा भोज के सार्वजनिक भोज से क्या लेना-देना? परिश्रम की सूखी रोटी का आनंद मुफ्त के पकवानों में कहां?’ श्रम और पसीने से मिली जीविका से जो आत्मगौरव जुड़ा है, उसका आनंद षटरस व्यजनों से भी अधिक है।

लकड़हारे की स्वस्थ सोच काबिलेगौर है। आप कभी भी बड़े या छोटे धर्म स्थल पर देखेंगे कि कितने ही हट्टे-कट्टे लोग भिक्षा पाने या मंदिरों में बंटने वाले भंडारे आदि का प्रसाद पाने के लिए वहां बैठते हैं। ऐसे लोग दूसरों पर इतने निर्भर हो चुके हैं कि उनसे किसी प्रकार का श्रम या परिश्रम नहीं हो पाता। ऐसे लोगों को बैठे-बिठाए कुछ खाने को मिल जाता है, वे फिर श्रम क्यों करें। ध्यान से ऐसे लोगों के चेहरे देखें तो लगेगा कि वे घोर निराशा से घिरे हैं और अर्थहीन जीवन जी रहे हैं।

श्रम के प्रति उपेक्षा आज बहुत से लोगों में बढ़ती जा रही है। इससे अनेक विषमताएं और समस्याएं उठ खड़ी हुई हैं। श्रम के प्रति उपेक्षा के भाव से अभाव और गरीबी को पोषण मिलता है। सच यह है कि किसी भी उपार्जन और उत्पादन का आधार श्रम ही है। जिस समाज में श्रम के प्रति दिलचस्पी न होगी वहां उपार्जन कैसे बढ़ेगा? श्रम न करने से शारीरिक प्रणाली ही असंतुलित हो जाती है। इससे अस्वस्थता बढ़ने लगती है। श्रम के अभाव में मनुष्य जीवन के सहज संतोष, सुख और मानसिक शांति से अलग रह जाता है। गरीबी और दीनता का कारण पर्याप्त और सही ढंग से श्रम न करना ही है। सामने पड़ा हुआ काम जब श्रम का अंजाम चाहता है और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे सोचते रहते हैं तो उसके लाभ से अलग रह जाते हैं।

प्रकृति का नियम है कि जो वस्तु उपयोग में नहीं आती, वह जल्द ही नष्ट हो जाती है। हमारा शरीर श्रम करने के लिए मिला है। लंबे-लंबे हाथ पैर, बुद्धि और तमाम अवयव कोई न कोई काम करने के लिए मिले हैं। जब दूसरों पर निर्भर हो, शरीर तंत्र का कोई उपयोग नहीं किया जाता तो यह उसी तरह नष्ट होने के लिए बाध्य होता है, जिस तरह बेकार पड़ी मशीन जंग लग कर खराब हो जाती है। श्रम न करना, अपने प्रति और समाज के प्रति एक अक्षम्य अपराध है। श्रम से शरीर तंत्र सक्रिय रहता है। इसलिए श्रमशील व्यक्ति हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रहता है।