पति पत्नी का सात्विक प्रेम सुखी दांपत्य जीवन का आधार है | The Spiritual Love Between Husband And Wife Is The Foundation Of A Happy Married Life.

*🥀 ०४ दिसंबर २०२४ बुधवार 🥀* *//मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष तृतीया २०८१//

* ➖➖‼️➖➖*‼ऋषि चिंतन‼*➖➖‼️➖➖*

❗पति पत्नी का सात्विक प्रेम❗**सुखी दांपत्य जीवन का आधार है* 〰️➖🌹➖〰️👉

*”सुखी दाम्पत्य” का आधार हैं-पति-पत्नी का शुद्ध सात्विक प्रेम।* जब दोनों एक-दूसरे के लिए अपनी स्वार्थ भावना का परित्याग कर देते हैं, तब हृदय परस्पर मिले-जुले रहते हैं। प्रेम में अहंकार का भाव नहीं होता है। त्याग ही त्याग चाहिए विशुद्ध प्रेम के लिए। *एक-दूसरे के लिए जितने गहन तल से समर्पण की भावना होगी उतना ही प्रगाढ़ प्रेम होगा। दाम्पत्य सुख प्राप्त करने के लिए प्रेम का प्रयोग करना चाहिए।* यह प्रेम त्याग भावना, कर्तव्य भावना से ही हो। *”सौन्दर्य” और “वासना” का प्रेम, प्रेम नहीं कहलाता, वह एक तरह का “धोखा” है।* जो इस जंजाल में फँस जाते हैं, उनका दाम्पत्य जीवन बुरी तरह बेहाल हो जाता है। *प्रेम आत्मा से करते है शरीर से नहीं, कर्तव्य से करते है कामुकता से नहीं। प्रेम में किसी तरह का विकार नहीं होना चाहिए।* शुद्ध, निर्मल और निश्चल प्रेम से ही पति-पत्नी एक सूत्र में बँधे रह सकेंगे- *सुखी दाम्पत्य जीवन का यह प्रमुख आधार है।*👉 इस सद्भावना का प्रमुख शत्रु है- अपना विषाक्त मन। *मन बड़ा शंकालु होता है, वह बात-बात पर सन्देह प्रकट करता है। लिंग-भेद के कारण स्त्री-पुरुष में कुछ न कुछ छिपाव होता है। हलके स्वभाव के व्यक्ति इन बातों को अपनी कटुता का आधार बनाते हैं।* तरह-तरह की कुत्सित कल्पनाओं से सन्देह के बीज बोते और वैमनस्य पैदा करते रहते हैं। *स्त्री और पुरुष के बीच में एक विश्वास होना चाहिए। अविचलित विश्वास रहेगा तो दुर्भावनाएँ अपने आप ही दूर रहेंगी और दाम्पत्य जीवन का वातावरण विषाक्त होने से बच भी जायेगा।*👉 *निःस्वार्थ सेवा-भाव हमारे प्रेम-बन्धन को मजबूत बनाता है। सेवा मनुष्य का सबसे बड़ा कर्त्तव्य है।* दाम्पत्य सुख की सुरक्षा में तो वह अपना विशिष्ट स्थान रखता है। *सेवा का अर्थ जो यह लगाते हैं कि वह “केवल सहधर्मिणी” का ही कर्तव्य है, वे भूल में हैं।* गृह-कार्यों का संचालन स्त्री की सेवा है और धन कमाना तथा उससे अपनी पत्नी की इच्छाएँ पूर्ण करने में पुरुष की सेवा मानी जाती है। *इन कर्मों का पालन कर्त्तव्य-भावना से हो, दासियों की तरह स्त्रियों से अपनी शारीरिक सेवा लेना मूर्खता है।* बीमारी या विवशता में तो ऐसा संभव है, *किन्तु इसे प्रतिदिन का व्यापार बना लेना उन अविवेकियों का ही काम हो सकता है, जो दाम्पत्य जीवन को एक पवित्र आध्यात्मिक संबंध न मानकर केवल जड़ता की दृष्टि से देखते हैं।* ऐसे ही कर्म करें तो फिर मनुष्य और पशुओं में अंतर ही क्या रहेगा ?

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