🥀 ०५ दिसंबर २०२४ गुरुवार 🥀
//मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष चतुर्थी २०८१//
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‼ऋषि चिंतन‼
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।सद्विचार, सद्गुण तथा सत्कर्म से।
❗दांपत्य जीवन सुखी बनता है❗
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👉 पति-पत्नी का प्रेम बरसाती नाले के समान अल्पकालीन नहीं, सदा बहने वाली नदी की तरह स्थाई होता है। नदी जब पर्वतों से निकलती है तो क्षीणकाय तथा तीव्रगामिनी होती है। मार्ग की चट्टानों से टकराती हुई, शोर करती हुई बहती है। उसमें जल कम और प्रवाह अधिक होता है। विवाह के आरम्भिक दिनों में पति-पत्नी के प्रेम की यही स्थिति होती है, उसमें भावुकता का प्रवाह अधिक तथा विवेकशीलता का जल कम होता है। जो पति-पत्नी केवल भावुकता का प्रवाह भर होते हैं वे बरसाती नाले की तरह शीघ्र ही सूख जाते हैं। जहाँ विवेक का जल होता है, वे निरन्तर आगे बढ़ते हुए अपने कलेवर को बढ़ाते चलते हैं।
👉 रूप-यौवन का आकर्षण अधिक दिनों तक पति-पत्नी को बाँधकर नहीं रख सकता। रूप की अपनी कोई मर्यादा नहीं है, यह मनुष्य के मन की उपज है। एक अफ्रीकी हब्शी के लिए काला रंग, मोटे होठ तथा चपटी नाक सुन्दरता की निशानी है। एक अमेरिका निवासी गोरे व्यक्ति के लिए यह सब कुछ कुरूपता का मान-दण्ड हो जाता है। चीनी छोटे पाँवों को सुन्दर मानते हैं। हमारे देश में काले कमर तक लहराते बाल सुन्दर माने जाते हैं तो इंग्लैंड में भूरे और छोटे-छोटे गर्दन तक लम्बे।
👉 रूप स्थाई भी तो नहीं होता, आयु के साथ ढल जाता है और अस्वस्थ होने पर बिगड़ जाता है। जो रूप को देखते हैं वे उसके समाप्त होने पर कैसे अपने जीवन साथी को प्यार कर सकेंगे ? रूप देखना ही है तो मानसिक सौन्दर्य में देखना चाहिए। सच्चा परिचय तो मानसिक ही होना चाहिए, यही प्रेम का आधार होता है। इसे बढ़ाया जा सकता है सद्विचारों से, सद्गुणों से तथा सत्कर्मों से। मानसिक सौन्दर्य को बढ़ाते रहने से व्यक्तित्व में निखार आता है, यह निखार परस्पर प्रीति बढ़ाने में पर्याप्त होता है।
👉 यौनासक्ति भी दाम्पत्य प्रेम का आधार नहीं हो सकती। स्त्री पुरुष का शारीरिक अंतर मात्र आकर्षण का केन्द्र नहीं होता, शरीर के पीछे मन भी लगा होता है। पुरुष कठोर परिश्रमी, बुद्धि प्रधान होता है। स्त्री कोमल, सहनशील तथा भावना प्रधान होती है। यही अंतर स्थूल रूप से शरीर की आकृति में भी स्पष्ट होता है।
👉 आजकल यह भ्रान्ति बुरी तरह फैल रही है कि पति-पत्नी के प्रेम को स्थाई रखने के लिए शारीरिक समानता का रूप-रंग, गठन आदि का समान होना आवश्यक है । यह नितांत भ्रामक है। मिलन तो उनके गुणों का होना चाहिए। पति अपनी पत्नी से सहनशीलता तथा भावनाओं का अनुदान प्राप्त करता है। पत्नी अपने पति से शारीरिक श्रम तथा बुद्धिमत्ता का लाभ उठाती है। परस्पर एक-दूसरे के पूरक बनकर पूर्णत्व की प्राप्ति करना ही इस विभिन्नता का परिणाम है।
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