Neglect of Spirituality is The Reason for The Evils Prevailing in The Society | समाज में व्याप्त बुराइयों का कारण अध्यात्मवाद की उपेक्षा

🥀 १० दिसंबर २०२३ रविवार🥀
!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष त्रयोदशी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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समाज में व्याप्त बुराइयों का कारण
➖अध्यात्मवाद की उपेक्षा➖
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👉 “अध्यात्म” मानव जीवन की सफलता का बहुत बड़ा आधार है। जीवन में “अध्यात्म” का समावेश किये बिना कोई मनुष्य सच्ची सफलता का अधिकारी नहीं बन सकता। लौकिक अथवा भौतिक विभूतियों की उपलब्धि ही जीवन की सफलता नहीं है। मानव-जीवन की वास्तविक सफलता है-अखंड एवं अक्षुण्ण सुख-शांति एवं संतोष की उपलब्धि। अंतर की यह मांगलिक स्थिति आत्मिक स्वास्थ्य पर निर्भर है। आत्मिक स्वास्थ्य के बिना बाह्य जीवन नितांत असफल एवं संतापयुक्त ही रहता है, फिर चाहे उसमें भौतिक विभूतियाँ और लौकिक संपदायें कितनी ही प्रचुर मात्रा में क्यों न उपलब्ध हों।
👉 भारत के समाज हितैषी ऋषि-मुनि, मनुष्य की वास्तविक सफलता और उसके लिए अध्यात्मवाद की आवश्यकता से अच्छी तरह अवगत थे। वे अवश्य ही चाहते थे कि यदि जनसाधारण अध्यात्म के अलौकिक स्तर पर भले ही न पहुँचे तथापि वे अपने
जीवन में इतना अध्यात्म तो अवश्य ही ग्रहण करें, जिससे वे अपने सामान्य जीवन में पूरी तरह से सुखी, संतुष्ट और शांत रह सकें । इसी मंतव्य के अंतर्गत उन्होंने अपने जनगण के लिए सामान्य साधना, स्वाध्याय और प्रातः तथा सायंकालीन संध्या-वंदन का नियम अनिवार्य बना दिया था। जो लोग प्रमादवश इस अनिवार्य नियम का पालन नहीं करते थे, उन्हें या तो समाज से बाहर माना जाता था अथवा पतित तथा पापी।
👉 भारतीय समाज आज जिस हीनावस्था में दिखलाई दे रहा है , उसका कारण यही है कि उसने अपने जीवन से आध्यात्मिक आदर्शों का एक प्रकार से बहिष्कार कर दिया है। कोरे भौतिक-आदर्श को अपनाकर चलने से जीवन के हर क्षेत्र में उसकी गतिविधि दूषित हो गई है। उसका चरित्र और आचरण निम्नकोटि का हो गया है। इस आदर्शहीन जीवन का जो परिणाम होना चाहिए, वह रोग-दोष, शोक-संताप के रूप में सबके सामने है। साधन, सामग्री और अवकाश व अवसर होने पर भी-कहीं भी, किसी और सुख-शांति के दर्शन नहीं हो रहे हैं दुर्भाग्य से आज देश में उल्टी विचारधारा चल पड़ी है।
👉 पहले जो लोग अध्यात्मवाद का आश्रय लेकर चलते थे, वे ही सभ्य, शिष्ट और सुसंस्कृत माने जाते थे। किंतु आज सभ्यता का तमगा उन लोगों के पास माना जाता है, जो अध्यात्म के प्रति उपेक्षा और तिरस्कार का भाव रखते हैं। जो अध्यात्म की, लोक-परलोक की, धर्म-कर्म की बात करता है, उसे मूर्ख, प्रतिगामी और पिछड़ा हुआ समझा जाता है। आध्यात्मिक विचारधारा के लोगों का उपहास किया जाता है। जिस समाज की विचारधारा इस प्रकार प्रतिकूलतापूर्ण हो गई हो, उसका सुख-सौभाग्य अस्त हो ही जाना चाहिए। ➖🪴➖