🥀 ११ दिसंबर २०२३ सोमवार🥀
!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष चतुर्दशी २०८० !!
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‼ऋषि चिंतन‼
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“अध्यात्मवाद” एक सशक्त विज्ञान
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👉 “अध्यात्मवाद” की उपेक्षा का मूल कारण यह है कि लोग अज्ञानवश भौतिकवाद के वशीभूत हो गए हैं, उन्हें विषय वासना और भोग, एषणाओं ने बुरी तरह जकड़ लिया है; वहां एक कारण यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि आज “अध्यात्मवाद” का सच्चा स्वरूप लोगों के सामने नहीं है। यदि अपनी वह प्राचीनकाल वाली उपयोगिता “अध्यात्मवाद” आज भी उपस्थित कर सके, अपना वास्तविक स्वरूप और सच्चा महत्त्व प्रकट कर सके तो निश्चय ही उसके प्रति समाज की सारी उपेक्षा और तिरस्कार भाव तिरोहित होते देर न लगे। किंतु अप्रकटन की स्थिति से किसी सत्य सिद्ध विज्ञान का न तो महत्त्व ही घट जाता है और न ही उसकी उपयोगिता ही नष्ट हो जाती है। “अध्यात्म” एक सत्य सिद्ध विज्ञान है। उसका महत्त्व सदा बना रहेगा। यह मध्यकालीन अंधकार शीघ्र ही दूर होगा और “अध्यात्मवाद” मानव-जीवन में अपना समुचित स्थान पाकर समाज का शोक-संताप हरेगा। कोई भी “अध्यात्मवादी” व्यक्ति इस विश्वास से विचलित नहीं हो सकता।
👉 भारतीय “अध्यात्मवाद” कितना शक्तिशाली विज्ञान है-यदि इसका प्रमाण पाना है तो भारतीय ऋषियों, तपस्वियों व साधकों का जीवन और उनकी घटनाओं को देखना होगा। भारतीय ऋषि-मुनि यदा-कदा आवश्यकता पड़ने पर ऐसे-ऐसे विलक्षण और आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाते थे, जिन्हें चमत्कार कहा जा सकता है। उनके आशीर्वाद से दूसरों का भला और शाप से अहित होने के असंख्यों उदाहरण पुराणों और इतिहासों में भरे पड़े हैं। महात्माओं की “आध्यात्मिक” शक्ति से भयभीत रहकर बड़े-बड़े बलधारी राजा-महाराजा उनकी प्रसन्नता के लिए विविध उपचार करते रहते थे।
👉 आज भी समाज जिन महात्माओं तथा साधकों की पूजा-प्रतिष्ठा करता है, उसका कारण भी उनका “आध्यात्मिक” तेज ही है। वैसे सामान्यतः पूजा-प्रतिष्ठा का हेतु धन-वैभव और शक्ति सत्ता आदि का तो उनके पास लेशमात्र भी नहीं होता था। योग शास्त्रों में जिन सिद्धियों और विभूतियों का वर्णन किया
गया है, वे वस्तुतः “आध्यात्मिक” साधना की ही उपलब्धियाँ हैं।