“Spirituality” That Shows The Right Path in Adversity | विपत्ति में सही मार्ग दिखाने वाला “अध्यात्मवाद”

!! मार्गशीर्ष कृष्णपक्ष द्वादशी २०८० !!
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
‼ऋषि चिंतन‼
➖➖➖➖‼️➖➖➖➖
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️
विपत्ति में सही मार्ग दिखाने वाला
➖”अध्यात्मवाद”➖
〰️〰️〰️➖🌹➖〰️〰️〰️
👉 “आध्यात्मिक” जीवन का सबसे बड़ा लाभ आत्मोद्धार माना गया है। अध्यात्मवादी का किसी भी दिशा में किया हुआ पुरुषार्थ परमार्थ का ही दूसरा रूप होता है। वह प्रत्येक कार्य को परमात्मा का कार्य और परिणाम को उसका प्रसाद मानता है । पुरुषार्थ द्वारा व्यक्ति के ईर्ष्या, द्वेष, माया, मोह, लोभ, स्वार्थ वासना आदि के संस्कार नष्ट हो जाते हैं और उनके स्थान पर त्याग, तपस्या, संतोष, परोपकार आदि के शुभ संस्कार विकसित होने लगते हैं। अध्यात्म मार्ग के पुण्य पथिक के हृदय से तुच्छता, दीनता, हीनता, दैन्य तथा दासता के अवगुण वैसे ही निकलते जाते हैं-जैसे शरद ऋतु में जलाशयों का जल मलातीत हो जाता है । स्वाधीनता, निर्भयताभाव, संपन्नता, पवित्रता आदि प्रवृत्तियां आध्यात्मिक जीवन की सहज उपलब्धियाँ हैं। इन्हें पाकर मनुष्य कुछ भी तो पाना शेष नहीं रह जाता। इस प्रकार की स्थायी प्रवृत्तियों को पाने से बढ़कर मनुष्य जीवन में कोई दूसरा लाभ हो नहीं सकता।
👉 संसार का कोई संकट, कोई भी विपत्ति आध्यात्मिक को विचलित नहीं कर सकती, उसके आत्मिक सुख को हिला नहीं सकती। जहाँ बड़े से बड़ा भौतिक दृष्टिकोण वाला मनुष्य व्यक्ति तनिक सा संकट आ जाने पर बालकों की तरह रोने, चिल्लाने भयभीत होने लगता है, वहाँ आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाला मनुष्य बड़ी से बड़ी आपत्ति में भी प्रसन्न एवं स्थिर रहा करता है। उसका दृष्टिकोण आध्यात्मिकता के प्रसाद से इतना व्यापक हो जाता है कि वह संपत्ति तथा विपत्ति दोनों को समान रूप से परमात्मा का प्रसाद मानता है और आत्मा को उसका उपभोक्ता, जबकि भौतिकवादी अहंकार से दूषित दृष्टिकोण के कारण अपने को उनका भोक्ता मानता है। आध्यात्मिक व्यक्ति आत्म-जीवी और भौतिकवादी शरीर-जीवी होता है। इसीलिए उनकी अनुभूतियों में इस प्रकार कबअंतर रहा करता है।
👉 सुख-संपत्ति की प्राप्ति से लेकर संकट सहन करने की क्षमता तक संसार की जो भी दैवी उपलब्धियाँ हैं, वे सब आध्यात्मिक जीवनयापन से ही संभव हो सकती हैं। मनुष्य जीवन का यह सर्वोपरि लाभ है। उसकी उपेक्षा कर देना अथवा प्राप्त न करने बढकर मानव-जीवन की कोई हानि नहीं हैं।
➖➖➖➖🪴➖➖➖➖